India’s Profound Kinship with Water

ऋषिकेश, ३ अगस्त २०१६, मन्त्रोच्चार के साथ पुजारी हर रात गंगा की आरती करते हैं। Shutterstock

हर हिन्दू के जीवन में जल का एक विशेष स्थान है। नदिया पवित्र हैं, मन्दिरों के तालाब आशीष देते हैं और हर दिन पूजा चढ़ायी जाती है।

अनुराधा गोयल, दिल्ली

प्यासे को पानी पिलाने से हमें तत्काल पुण्य यासद्गुण प्राप्त होता है—ऐस हमारी दादियों ने बताया है। पूरे भारत में यात्रा कीजिये और आप इसे एक जीवित परम्परा के रूप में पायेंगे, जहाँ सड़कों पर पानी से भरे मिट्टी के बर्तन उनके लिए रखे जाते हैं जो प्यासे हो सकते हैं। समय के साथ, मिट्टी के बर्तनों की जगह पानी को ठंडा करने वाले वाटर कूलरों आ गये हैं लेकिन यह विचार अभी भी बना हुआ है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में, आप औरतों को तेज धूप में सड़क पर बैठकर राहगीरों को पानी पिलाते हुए देख सकते हैं। न केवल साथ के इंसानों को; हम पक्षियों और पशुओं के लिए भी पानी रखते हैं।

पानी पंच तत्वों में से एक है, पाँच मूल तत्व जिनसे हर चीज़ बनी है, चार अन्य है धरती, वायु, अग्नि और आकाश। इनमें से, जन मूल पोषक है, जिसके बिना मनुष्यों समेत ज़्यादातर जीवन नहीं चल सकता। आश्चर्य की बात नहीं है कि जब मनुष्य ने बसना शुरु किया तो उसने पहाड़ियों से समुद्र की ओर बहने वाली नदियों के निकट बसना शुरु किया। ये भूमि उपजाऊ थी, जो निरन्तर खाद्यान्न की आपूर्ति सुनिश्चित करती थी; लेकिन ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हर तरह की आवश्यकता के लिए प्रचुर मात्रा में पानी था। बाद में, जब मनुष्य ने नदियों से दूर बसना शुरु किया तो उसने बड़ी झीलें बनायीं जिससे वे जल का भण्डारण और नीचे की धरती को संतृप्त कर सकते थे। भोपाल, हैदराबाद और बंगलुरु जैसे शहर झीलों से भरे हुए शहर के अच्छे उदाहरण हैं।

भारत में, जो भी आपका पालन करता है वह देवता होता है, एक ईश्वर जो पूज्यनीय होता है। इसलिए, जल के हर स्रोत का सम्मान किया जाता है इसकी प्रार्थना की जाती है—चाहे यह समुद्र हो, नदी हो, तालाब हो, कुएँ और झीलें हो, या मानव निर्मित सीढ़ीदार बावड़ियाँ या मन्दिर के तालाब हों। जल की पूजा कम से कम पीछे वैदिक काल तक मिलती है। ऋग्वेद की “नदी स्तुति सूक्त” मन्त्र में उन मुख्य नदियों की प्रशंसा की गयी है जो भारत भूमि को पोषित करती हैं जिनमें, गंगा, यमुना, शताद्रि (अब सतलुज), सरस्वती, असिक्नी (चिनाब), परुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम) और कई अन्य नदियाँ हैं जो अब विलुप्त हो चुकी हैं। ज़्यादातर बड़ी नदियों की अपनी स्तुतियाँ, अथवा गीत हैं जो उनकी प्रशंसा करते हैं, जो उनकी पूजा करते समय विधिवत गाये जाते हैं।

Rani Ki Vav is a stepwell (and UNESCO World Heritage site) located in Patan, Gujarat. Shutterstock

रानी की वाव एक बावड़ी है (और यूनेस्को विरासत स्थल है) जो पतन, गुजरात में स्थित है। Shutterstock

दुर्भाग्य से, जल से समृद्ध संस्कृति जिसने जल को इतनी श्रद्धा दी, वह बहुत तेज गति से जल को खो रही है। नदियाँ उनमें बिना जाँच के डाले जा रहे जहरीले औद्योगिक अपशिष्ट के कारण प्रदूषित हो रही हैं। पहाड़ी मेघालय राज्य में स्थित चेरापूँजी और मासिनराम क्षेत्र पृथ्वी की सबसे गीली जगहों में से है, जहाँ हर वर्ष औसतन ४६७ इंच बारिश होती है। गर्मी के मौसम में आइये, यहाँ तक कि इन क्षेत्रों में भी जल की कमी का सामना करना पड़ता है। भूजल सारणी पूरे देश में सिमटती जा रही है, और शहरी क्षेत्रों में तो यह भयावह रूप से कम हो गयी है। बंगलु जैसे बड़े शहरों के ज़ल्द ही सूख जाने की उम्मीद है। पी. साईनाख—जो परी (पीपुल्स आर्काइव ऑफ़ रूरल इंडिया) के संस्थापक/सम्पादक हैं, कहते हैं कि प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता १९५१ में ५,१७७ घनमीटर से घटकर २०११ में ३,३०० घनमीटर हो गयी है। वह इसके लिए छोटे भूमालिक किसान से लेकर शहरी क्षेत्रों के उद्योगों के पूरे चैनल को इसका ज़िम्मेदार ठहराते हैं।

पाइप के पानी पर निर्भरता ने, जिसके बारे में उपभोक्तो को पता ही नहीं होता कि वह कहाँ से आता है, मनुष्य और जल स्रोतों के बीच के सम्बन्ध को तोड़ दिया है। लोग जिनके पूर्वजों ने अपने दिन की शुरुआत निकट और दूर के जल स्रोतों की पूजा करके करते थे, नहाने के लिए अपने शरीर पर पानी डालते समय पवित्र नदियों का “गंगा च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संनिधिम कुरु” जैसे मन्त्र द्वारा आह्वान करते थे, अब इसे एक माल की तरह समझा जाता है जिसे वे खरीदते हैं। विडम्बना है कि, ऐसे लोग जो युगों से मानते थे कि प्यासे को स्थानीय पानी पिलाने से बहुत सद्गुण मिलते हैं, अब तीर्थयात्रियों को प्रदूषित करने वाले प्लास्टिक की बोतलों में पानी बेंचते हैं, वह पानी जिसे धरती से निकाला जाता है और लम्बी दूरी तक ले जाया जाता है। समय आ गया है कि भारत पानी के साथ अपने पवित्र संबंध को महसूस करे, इसे पुनर्जीवित करे और फिर से स्थापित करे, इसे महत्व दे, इसे संजोए और प्रचुर मात्रा में पानी के साथ रहे, ठीक वैसे ही जैसे हमारे पूर्वजों ने किया था।

अभय मिश्रा—लेखक और आईजीएनसीए, नयी दिल्ली में नदी संस्कृति के छात्र है, इस विचार का समर्थन करते हैं कि टोंटी के पानी ने हमें हमारे जल के स्रोतों से काट दिया है, जिसे समाज द्वारा सामूहिक तौर पर प्रबन्धित किया जाता था। वह परिवार और सामाजिक कर्मकाण्डों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को याद करते हैं और ज़ोर देते हैं कि हम जल के स्रोतों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना भूल गये हैं। वह सौरभ सिंह के प्रयासों की चर्चा करते हैं, जो गाज़ीपुर में पेयजल के लिए कुओं का पुनरोद्धार कर रहे हैं। यह उन्हें भूजल में आर्सेनिक के गम्भीर खतरे से निपटने में सहायता कर रही है, जो एक ऐसी समस्या है जिसकी जड़ें खेतों में बहुत अधिक ट्यूबवेल बना देने में है। वह हल्मा का उदाहरण देते हैं, जो मध्य भारत के झबुआ क्षेत्र में शिवगंगा संस्था द्वारा संगठित किया गया आम मुद्दों के लिए एक सामुदायिक प्रयास है। हजारों ग्रामवासी सप्ताह में एक दिन हाथीपाँव पहाड़ी पर ३०,००० खाईयाँ बनाने के लिए काम करते हैं, जिसमें पानी एकत्र किया जा सके, जो कि पहले नष्ट हो जाता था। प्रत्येक खाई दो मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी और आधा मीटर गहरी है। ऐसी खाइयों का समूह पानी का भण्डारण और उसे प्रवाहमान करता है, जिससे क्षेत्र की जैवविविधता बढ़ती है। यह सामुदायिक प्रयासों द्वारा न्यूनतम क़ीमत पर प्राप्त किया गया है। ऐसे ही प्रयास देश के अन्य भागों में भी हो रहे हैं। उम्मीद है कि ये जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की गतिविधिया पूरे भारत में बढ़ेंगी और जल प्रबन्धन और उपभोग के बीच के अनिवार्य सन्तुलन को पुनः प्राप्त करेंगी। ये प्रयास हमें अतीत में भारत की शानदार जल विरासत की ओर देखने के लिए प्रेरित करते हैं।

Pilgrims bathe and make offerings at the tank of Matangeswara Temple in Khajuraho. Shutterstock

खजुराहो के मातंगेश्वर मन्दिर के तालाब में स्नान करते और चढ़ावा चढ़ाते तीर्थयात्री। Shutterstock

पानी, पानी हर जगह

भारत एक “जल प्रधान”, पानी से भरपूर भूमि है। न केवल इसे ४,६७० मील लम्बी तटरेखा होने का सौभाग्या प्राप्त है जो तीन महासागरों को छूती है, बल्कि इसका पूरा भूदृश्य नदियों के विशाल संजाल (नेटवर्क) से सुशोभित है जो पहाड़ियों और पर्वतों से निकलती हैं और समुद्र की तरफ़ जाती हैं। वे देश की तन्त्रिका तन्त्र के समान हैं, जो जल अर्थात्, जीवनदायी अमृत को धरती के सभी भागों तक ले जाती हैं। हजारों छोटी धाराएँ, जो झरनों से अलंकृत हैं, असंख्य क्षेत्रों से बहते हुए इन नदियों में मिलती हैं। भारत सात नदियों के देश के रूप में प्रसिद्ध है, नदियाँ जिनका हर प्रमुख कर्मकाण्ड में आह्वान किया जाता है। हालांकि, प्रत्येक क्षेत्र में इतनी नदियाँ और नदी घाटी बस्तियाँ हैं कि इसे हजारों नदियों का देश कहना अनुचित नहीं होगा। प्रत्येक सहायक नदी के तट पर प्रसिद्ध शहर और तीर्थस्थल हैं। गंगा के पास हरिद्वार है, जहाँ से यह हिमालय के चरणों से निकलकर मैदान में प्रवेश करती है, और उसके बाद काशी है, जहाँ यह कुछ देर के अपने उद्गम को देखने के लिए उत्तर की दिशा में बहती है। कावेरी दक्षिण भारत में कोडागु पहाड़ियों से निकलती है और पूरब की तरफ़ बंगाल की खाड़ी की ओर बहती है, और कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों को पोषित करती है। प्रत्येक नदी की पुराणों में अपनी कहानी है। राजा भगीरथ गंगा को स्वर्ग से शिव की जटाओं के जरिये नीचे लेकर आये। ताप्ती सूर्य की पुत्री हैं। गोदावारी को ऋषि गौतम के साथ जुड़ाव के कारण गौतमी कहा जाता है। कावेरी ऋषि अगस्त्य के कमण्डल या धातु के बर्तन से नीचे आयी थीं। ब्रह्मपुत्र एक सरोवर से निकली हैं, जो उस स्थान से निकलती हैं जहाँ ब्रह्मा के पुत्र को स्थापित किया गया था, जिससे यह एक दुर्लभ पुरुष नदी बन जाती है। पुराणों के अनुसार, ज़्यादातर नदिया देवियाँ हैं जो धरती पर अपने द्रव्य, या द्रव रूप में रहती हैं। वास्तव में इन्द्रलोक की सबसे सुन्दर स्त्रियाँ जल से उत्पन्न हुई थीं और इसीलिए उन्हें अप्सराएँ कहते हैं—अप का अर्थ है जल।

A temple water tank at Hampi, the center of the Hindu Vijayanagara Empire. Credit: Saikap

हम्पी, हिन्दू विजयनगर साम्राज्य के केन्द्र मन्दिर का तालाब। श्रेय: सैकप

Jabalpur tourists ride a cable car to enjoy an aerial view of Dhuandhar waterfall on the Narmada River. Hari Mahidhar

जबलपुर के पर्यटक नर्मदा नदी पर धुआँधार जलप्रपात का आनन्द लेने के लिए केबल कार की सवारी कर रहे हैं। हरि मणिधर

भारत की जल के प्रति श्रद्ध नदियों से बढ़कर इस धरती पर गिरने वाली बारिश की हर बूँद तक जाती है। तेज़ गर्मी के महीनों में, लोग आसमान की तरफ़ देखते रहते हैं, प्रतीक्षा करते हैं कि बादल दिखें और उन्हें निश्चिंत करें कि बारिश होने वाली है। क्यों नहीं? अन्ततः बारिश ही है जो कृषि अर्थव्यवस्था के पहियों को गतिमान करती है। इससे ज़्यादा खुशी और किसी चीज़ से नहीं होती जितनी कि उन चार महीनों की भरपूर बारिश से जिन्हें चतुर्मास के नाम से जाना जाता है।  यह वह समय होता है जब यात्राएँ रुक जाती हैं, खेतों को अपने पर छोड़ दिया जाता है और लोग घर पर रहते हैं। यहाँ तक भ्रमण करने वाले साधु भी इन चार महीनों के लिए रुकने के लिए एक स्थान चुन लेते हैं। रामायण में, श्री राम और उनके भाई लक्ष्मण ने लंका जाने से पहले चतुर्मास के दौरान किष्किन्धा के बाहर शिविर लगाया था। मानसून के लिए संस्कृत शब्द वर्षा है। यही शब्द साल के लिए प्रयोग किया जाता है, जो बारिश को वह महत्व देता है जिसके वह योग्य है। मानसून भारत के छः मौसमों में से एक है। यह आमतौर पर जून के शुरु में ही दक्षिणी तट से शुरु होता है और ऊपर की ओर आते हुए सितम्बर के अन्त में समाप्त होता है। लद्दाख और राजस्थान में स्थित ठंडे और गर्म दोनों रेगिस्तानों में मुश्किल से ही कभी बारिश होती है, जबकि तटीय इलाक़ों में लगभग १२० इंच और सबसे अधिक बारिश के इलाक़े में ५५० इंच बारिश होती है। “कजरी” जैसे लोकगीत जो मानसून के दौरान गाये जाते हैं, वे बारिश द्वारा जगायी जाने वाली भावनाओं से भरपूर होते हैं। कालिदास ने बहुत ने बहुत विचारोत्तेजक वर्णन करते हुए अपने काव्य ‘रितुसंहार’ में मानसून को कामनाओं का मौसम बताया है।

Kerala fishermen pull in a large net of sardines at Kannur. Daniel J. Rao

केरल के मछुआरे कन्नूर में सार्डिन मछलियों के एक बड़े जाल को खींचते हुए। डैनियल जे. राव

अनुपम मिश्रा, जो वर्षाजल के संचय और जल संरक्षण में आगे रहते हैं, को बहुत से पारम्परिक जल संरक्षण तकनीकों को पुनर्जीवित करने का श्रेत है। अपनी कॉपीराइट से मुक्त किताब तालाब अभी भी प्रासंगिक हैं में, वह हमें भारत के विभिन्न हिस्सों में जल निकायों को पारितन्त्र में ले जाते हैं। वह चर्चा करते हैं कि किस प्रकार लोग तालाबों को बनाने के लिए सही जगह और समय चुनते थे और कैसे वे वर्षों तक इसका रखरखाव करते थे, जिसमें समाज का हर वह तबका शामिल होता था जो इससे लाभ प्राप्त करता था। रेगिस्तानी शहरों में, प्रत्येक छत जल संग्रह प्रणाली से जुड़ी हुई थी जो व्यक्तिगत कुओं तक जाती थीं, इन शहरों में जैसलमेर भी शामिल है, भले ही यहाँ ५२ दर्शनीय तालाबों का खजाना अभी भी है।

Monsoon time in Chennai is an annual event. Daniel J. Rao

मानसून का समय चेन्नई में एक वार्षिक कार्यक्रम का समय होता है। डैनियल जे. राव

बावड़ियाँ

असाधारण बावड़ियाँ पूरे देश में बिखरी हुई हैं, इनमें से ज़्यादातर सूखे पश्चिमी राज्यों जैसे राजस्थान और गुजरात में हैं। वे मानव निर्मित नखलिस्तान हैं जो न केवल जल संचय करते थे बल्कि एकत्र होने के सामाजिक स्थान के रूप में भी काम करते थे। वे विष्णु को समर्पित उल्टे मन्दिरों जैसे बनाये गये हैं, जो क्षीरसागर के जल में सोना पसन्द करते हैं।

रानी की वाव (“रानी का कुआँ”) सोलंकी साम्राज्य की रानी उदयमति द्वारा ११वीं सदी में गुजरात राज्य के पाटन कस्बे में बनाया गया था। यह धरती से सात स्तर नीचे तक उतरता है, जिसमें हर तरफ़ पत्थर की सीढ़ियाँ और चबूतरे हैं, जो अलंकृत नक्काशियों से सुशोभित है, जो ३१ फ़ीट चौड़े और ७५ फ़ीट गहरे तालाब तक ले जाती है। आप सोचते हैं कि रानी को ऐसा स्थापत्य का आश्चर्य बनाने के लिए किस चीज़ ने प्रेरित किया, जिसे उसे दिवंगत पति की याद में बनाया गया माना जाता है। मेरा उत्तर है पुण्य: जो सबसे शानदार सद्गुण है जिसे आप लोगों के लिए पानी की उपलब्धता को सुनिश्चित करके प्राप्त करते हैं।

जयपुर के निकट अभनेरी में, चाँद बावड़ी अपनी बिल्कुल समरूप आकृति के कारण सर्वाधिक चित्रण योग्य बावड़ी बनाती है। इसकी ३,५०० से अधिक लयबद्ध ज्यमितीय सीढ़ियाँ जो किनारों पर चलती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि आप हर समय जलस्तर तक पहुँच सकते हैं।

प्रयागराज के निकट श्रृंगवेरपुर में, बारिश के मौसम में गंगा के बाढ़ के पानी को इकट्ठा करने और अतिरिक्त पानी को वापस नदी में भेजने के लिए जुड़े हुए तालाबों की एक प्राचीन जटिल प्रणाली है। तालाब न केवल जल का संचय करते थे बल्कि अवसादन प्रक्रिया से इसे साफ़ भी करते थे। हमें धौलावीरा जैसे पुरातात्विक स्थलों पर सघन जल प्रबन्धन प्रणाली मिलती है, जो सिन्धु सरस्वती नदी घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है, जो कम से कम ८वीं सदी ईसा पूर्व की है। जल ग्रीवाओं को लगभग २,००० साल पुरानी खुदाई में प्राप्त बौद्ध गुफाओं के हर तरफ़ भी देखा जा सकता है जो कन्हेरी गुफाएँ कहलाती हैं और मुम्बई के हृदय में स्थित हैं। नियमित अन्तराल पर बने आपस में जुड़ी हुई पानी की टंकियाँ चट्टान की प्राकृतिक ढलान से लाभ उठाती है, और गुफ़ाओं की छत से जल प्राप्त करती हैं। चार महीनों में एकत्र हुआ जल भिक्षुओं के लिए पूरे वर्ष चलता था।

पूर्वी राज्य ओडिसा में, जब आप ग्रामीण भूदृश्य से होकर यात्रा करते हैं, तो जब आप बड़े तालाबों की श्रृंखला, जिसमें बिना किसी बदलाव के बीच में या किनारे पर मन्दिर होता है, को देखते हैं तब आप जान जाते हैं कि आप किसी गाँव के निकट हैं। उत्तर पूर्वी राज्यों में, ज़्यादातर तालाब कमल के फूलों से भरे हुए हैं जो अपनी चौड़ी पत्तियों से जल को ढँक लेते हैं, जिससे वाष्पीकरण के ज़रिये जल के नुकसान न्यूनतम हो जाता है।

प्राचीन भारत के हर मन्दिर में, यदि अधिक नहीं तो कम-से-कम एक तालाब होता था। स्कन्द पुराण, अपने “अयोध्या माहात्म्य” में अयोध्या के नक्शे को परस्पर जुड़े हुए तालाबों की एक श्रृंखला के रूप में वर्णित करता है, बावज़ूद इसके कि शहर सरयू नदी के तट पर स्थित है, जो कि हमेशा बहती रहने वाली नदी है। दक्षिण में, प्राचीन मन्दिरों का शहर कांचीपुरम् मन्दिरों के अन्दर और बाहर तालाबों से भरा हुआ है। नगर के हृदय में सर्व तीर्थम् कुलम् है, तो तीन तरफ़ से छोटे मन्दिरों से घिरा हुआ एक बड़ा तालाब है। इसकी केवल एक ऐसे स्थान के रूप में कल्पना की जा सकती है जहाँ पुराने समय में स्थानीय लोग और तीर्थयात्री मिलते थे और कहानियों का आदान-प्रदान करते थे।

आशा की किरण: तमिलनाडु में मन्दिर के तालाबों के जीर्णोद्धार ने भूजल के स्तर पर तत्काल प्रभाव डाला है, जिससे प्रदर्शित होता है कि यदि इन तालाबों के प्रवेश और निकास का रखरखाव किया जाये, तो वे अपने आप वर्षाजल को पृथ्वी के अन्दर भेज देंगे, जो अन्यथा यूँ ही नष्ट हो जायेगा। जल संरक्षण का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मांडू में देखा गया है जो एक प्राचीन नगर है जो एक समतल पहाड़ी के ऊपर स्थित है जहाँ वार्षिक वर्षा के अतिरिक्त जल की और कोई आपूर्ति नहीं है। निकटतम नदी नर्मदा ४० मील से अधिक दूर है। नगर अपने समय में विश्व की सर्वाधिक सघन आबादी वाले नगरों में था, लेकिन ऐसा लगता है कि कभी जल की कमी नहीं रही। चारो तरफ़ घूमने पर आपको जल को संचित करने के लिए झीलों की श्रृंखला दिखायी पड़ती है। शाही निवास के भीतर, गहरे कुओं के चारों तरफ़ इमारतों को इस तरह व्यवस्थित किया गया था कि जल की हर बूँद को संचित किया जा सके। आपको भी छत पर स्थित विलासितापूर्ण तरणताल दिखाई पड़ते हैं! इतना अधिक कि इस महल को जहाज महल कहा जाता है, क्योंकि यह पानी पर तैरते हुए एक जहाज की तरह दिखाई देता है जिसके दोनों तरफ़ दो बड़ी झीलें हैं। पूरा नगर जल संचय और संरक्षण के इर्द-गिर्द निर्मित किया गया है।

Stone walkways provide access to abundant reserves of water in the ancient city of Mandu, Madhya Pradesh. Shutterstock

पत्थर के रास्ते प्राचीन मांडू, मध्य प्रदेश नगर के प्रचुर जल भण्डारों तक ले जाते हैं। Shutterstock

जहाँ नदियाँ मिलती हैं

भारत की सभी तीर्थयात्राओं में गन्तव्य स्थल के पवित्र जल में डुबकी लेना शामिल है। क्या काशी का तीर्थाटन गंगा में डुबकी लगाये बिना कभी पूरा हो सकता है? प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा, जो काशी के बड़े मण्डल के चारो तरफ़ होती है, मणिकर्णिका घाट पर नौका विहार के साथ प्रारम्भ और समाप्त होती है। नर्मदा, जो भारत की प्राचीनतम नदी है, उसे सर्वोच्च अर्पण नर्मदा परिक्रमा है, जहाँ तीर्थयात्री नर्मदा की सम्पूर्ण लम्बाई में चलते हैं और फ़िर विपरीत किनारे पर वापस आते हैं, इस दौरान हर सुबह इसके जल में पवित्र स्नान करते हैं। वे महीनों तक और कई बार वर्षों तक साथ में 1,600 मील  से अधिक चलते हैं, रातों में मन्दिरों और आश्रमों में रुकते हैं और जो भी मिलता है उसे खाते हैं।

यह मुझे पृथ्वी पर जल के सबसे शानदार उत्सव कुम्भ मेला ले आती है, जो हर 12 वर्ष पर चार अलग-अलग स्थानों पर होती है। इस बड़े उत्सव का हृदयस्थल पवित्र नदियों में स्नान करना है—गंगा, यमुना और सरस्वती नदियो के संगम पर प्रयाग में; गंगा नदी में हरिद्वार में; क्षिप्रा नदी में उज्जैन में, और गोदावरी नदी में नासिक में। लाखों लोग पूरे देश से ग्रहों के सटीक स्थिति होने पर मात्र एक डुबकी लगाने के लिए आते हैं। आप कुम्भ में बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य तौर पर पवित्र नदी पर जाना, इसकी पूजा करना और इसमें डुबकी लगाना है।

प्रत्येक वर्ष के दौरान, भारत की प्रसिद्ध नदियों में बहुत पवित्र माने जाने वाले स्नान होते हैं। कार्तिक की पूर्णिम,जनवरी में, दीवाली के 15 दिनों के बाद, कई रूपों में मनायी जाती है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है अपने पास की पवित्र नदी में स्नान करना। तीव्र घटनाओं जैसे सूर्य ग्रहण के लिए विशेष स्नान या स्नान के मुहूर्त होते हैं, जब तीर्थयात्री एकक धार्मिक स्नान के लिए कुरुक्षेत्र जैसी पवित्र जगहों पर जाते हैं।

A devotee bathes a sacred Sivalinga with water.

एक भक्त शिवलिंग पर जल चढ़ाता है

भारत के प्रत्येक प्रमुख धाम द्वारा जिन उद्देश्यों की पूर्ति होती है, उस पर ध्यान देना रोचक है। देवता उत्तर में हिमालय में स्थित बद्रिकाश्रम में ध्यान करते हैं। वे पुरी के अन्न क्षेत्र में भोजन करते हैं। वे पश्चिमी तट पर स्थित द्वारका में सोते हैं। और वे दक्षिण में रामेश्वरम में स्नान करते हैं।

रामेश्वर मन्दिर के दर 22 पत्थरों वाला एक जलाश्चर्य है, जहाँ प्राचीन परम्परा का पालन करते हुए, तीर्थयात्री काशी से लाये गये गंगा नदी के जल को शिवलिंग पर चढ़ाने के बाद स्नान करते हैं। वे कहते हैं कि इन नित्य कुओं में स्नान करने से आपके सारे पाप धुल जाते हैं। प्रत्येक कुएँ के पास एक नाम और राजाओं और साधुओं की कहानी है जिन्होंने इन कुओं में स्नान किया था और पापों के प्रकार हैं जिन पर यह कुआँ प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए, कोड़ी तीर्थ में, श्री कृष्णा को कंस को मारने के पाप से मुक्ति मिली थी, और चक्र तीर्थ में स्नान करने के बाद सूर्य को उसकी स्वर्णिम आभा वापस मिल गयी थी।

Tens of millions of pilgrims gather on India’s riverbanks in Haridwar, seeking blessings. Indian Express

करोड़ों तीर्थयात्री भारत में हरिद्वार में नदी के तट पर एकत्र होते हैं, और वर माँगते हैं। Indian Express

ज़रूरतमन्दों को जल प्रदान करने की भावना के साथ, भारत जल का शुद्ध निर्तातक है। नहीं, वास्तव में यह जल का विक्रय नहीं करता है, लेकिन इसका प्रमुख निर्यात कृषि उत्पाद हैं जिनकी वृद्धि के लिए बहुत पानी आवश्यक होता है। निर्यात की जाने वाली प्रमुख फसलों में चावल, कपास और गन्ना है, जिनके लिए बहुत पानी की आवश्यकता होती है। इसमें बड़े पैमाने का मांस का निर्यात जुड़ जाता है। सारतः भारत अपने ऊपर उन देशों के जल का भी भार ले लेता है जिनको यह निर्यात करता है। क्या यह इसे कर सकता है या करना चाहिए जबकि यह खुद पानी की कमी से जूझ रहा है? यह आशाजनक है कि भारत सरकार ने २०१९ में जलशक्ति मन्त्रालय बनाया है, जो एक ऐसा अभिकरण है जो जल को प्रमुख संसाधन के रूप में देखता है और उससे नदियों की जीर्णोद्धार हेतु काम करने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें गंगा की सफाई और प्रत्येक व्यक्ति तक सुरक्षित स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति शामिल है। उम्मीद है कि, यह भारत को फिर से जल से समृद्ध बनाने के लिए आवश्यक ध्यान केन्द्रित करेगा, साथ ही उस संस्कृति को भी वापस लायेगा जो दैनिक जीवन में जल को उतना ही पवित्र मानती है जितना कि धार्मिक कार्यों में।


रामेश्वर मन्दिर के कर्म पर विजय प्राप्त करने वाले कुएँ

प्राचीन दक्षिण भारतीय मन्दिर के २२ कुएँ तीर्थयात्रियों के पाप धो देते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इसका जटिल परिसर भारतीय मन्दिर के मानकों से भी बड़ा है जिसमें हजारों फ़ीट ऊँची छतों वाली ग्रेनाइट के स्तम्भों के गलियारे हैं। यहाँ की तीर्थयात्रा करने के बाद, आप स्वयं को बंगाल की खाड़ी में तीन बार डुबकी लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। आप मुड़ते हैं और मन्दिर की मीनार तक ७०० फ़ीट चलते हैं, पत्थर के कक्षों, फिसलन भरी फर्शों और स्टीर की रेलिंग वाली फंतासी की दुनिया में प्रवेश करते हैं। पहले कुएँ पर, समूहों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट दिया जाता है जो कि अगले ९० मिनट साथ में बितायेंगे। जैसा कि आपके गुरु बताते हैं, आप अपने इस जीवन की बहुत पुरानी और दूर तक के ग़लत कार्यों को अपने मन में रखते हैं—जिन्हें कभी-कभी पाप कहा जाता है, लेकिन यह आरोप लगाने वाला शब्द है, बहुत अधिक अब्राहमीय। आपके कुकृत्यों का ढेर आगे बहा दिया जाता है—ग़लत कार्य, पहुँचायी गयी चोटें, अपराध, आपकी अज्ञानता के दोष और उसके शिकार—सब कुछ, जो यहाँ तक लाया गया है। प्रत्येक कुएँ पर उनमें एक प्रवाहित हो जायेगा, उसकी स्वीकृति होगी—क्योंकि शिवत्व का पवित्र जल आपके ऊपर उड़ेला जायेगा—जो हमेशा के लिए धुल जायेगा और मुक्त कर दिया जायेगा। आप सोचते हैं कि इन सबसे मुक्त होना कैसा लगता होगा।

तीर्थयात्री तैयार हैं, और आपको तुरन्त एक पतले आदमी के पीछे चलने को कहा जाता है, जो आगे-आगे एक लम्बी-पीली रस्सी से बँधी टिन की टूटी बाल्टी लेकर तेजी से चलता है। गाइड की अँधेरे कमरो से होकर तेजी से निकलता है, और आपका १५ लोगों का समूह साथ बने रहने की कोशिश करता है, जो दर्जनों अन्य बाल्टी लेकर चलने वालों के पीछे चलने वाले सैकड़ों लोगों से दिग्भ्रमित हो गया है, सभी इधर-उधर चल रहे हैं, गीले पत्थर की फर्श पर नंगे पैर भाग रहे हैं, जिसे पिछले करोड़ों यात्रियों के पैरों ने चिकना कर दिया है। अचानक गाइड दूसरे कुएँ पर रुकता है और कुएँ के ऊपर इतनी फुरती से चढ़ता है कि आप भूल जाते हैं कि उसका ठहरना कितना संशय भरा है। वह पानी में बाल्टी को उछालता है जो लगभग २० फ़ीट नीचे हैं, जो वर्षों के अभ्यास के कारण बिजली की फुर्ती से होता है, भरी हुई बाल्टी को ऊपर लाता है, आपके सिर के ऊपर तेज से ठंडे पानी को उड़ेलता है। दूसरे अपनी बारी के लिए आगे आते हैं, और आप उस क्षण उद्देश्यपूर्ण ढंग से देखते हैं कि एक भयानक कुकृत्य कैसे गायब हो जाता है।

समूह एक धुँधली सुरंग से निकलता है, बाहर खुले में एक धूपदार आँगन में और फ़िर वापस अँधे गलियारों में, दायें और बायें चलते हुए जब तक कि तीसरा कुआँ नहीं आ जाता। आप महसूस करते हैं कि आप दिक् और काल दोनों में भ्रमित हो गये हैं। वह बिल्कुल चिन्ता का कारण हो सकता है, लेकिन यहाँ नहीं, अभी नहीं। यह परमानन्द की अवस्था है, जो एक साथ हर जगह और हर अवसर पर होने की अनुभूति है।

कुएँ किसी तार्किक क्रम में नहीं हैं, कुछ दूर हैं, कुछ पास हैं। कुछ गोल हैं तो कुछ चौकोर हैं। एक बड़ा मन्दिर का तालाब प्रकट होता है, जो १०० फ़ीट चौड़ा है और कुमुदनियों से भरा हुआ है। आप आत्मा की हल्कापन महसूस करते हैं क्योंकि अपराध, दुराचार और कठोरता दूर हो जाती है।

हर कुएँ की एक कहानी है, जो आपको बतायी जाती है। सबसे पहले, महालक्ष्मी तीर्थम्, धन-धान्य प्रदान करता है। दूसरे, तीसरे और चौथे ने एक ऋषि के शाप से मुक्त किया था। गंगा तीर्थ में, जो १३वां कुआँ है, राम को रावण के वध के पाप से मुक्ति मिली थी। आप अन्तिम कुएँ तक पहुँचते हैं, जो बाईसवाँ है। जिसे कोड़ी तीर्थम् कहते हैं, ऐसा कहा जाता है यह गंगा में दस लाख बार स्नान के बराबर पुण्य प्रदान करता है। यहाँ कोई बाल्टी नहीं होती, बस एक छोटा पीतल का कप होता है जिसमें बहुत कम आता है। कितनी विडमम्बना है। सबसे बड़ा वरदान सबसे छोटे बरतन से!

आप को अजीब ढंग से अलग महसूस होता है, ठीक अपने साथ और दुनिया के साथ भी। “यह कब तक रहेगा?” आप सोचते हैं।


लेखक के बारे में

अनुराधा गोयल भारत की प्रमुख यात्रा ब्लॉगर्स में से एक हैं। www.IndiTales.com में उनका मुख्य ध्यान भारतीय सभ्यता और मन्दिर के स्थापत्य और साथ ही पुरानी तकनीकी जैसे बावड़ी के साथ जल प्रबन्धन पर रहता है।