Avoiding Diabetes

मौजूदा चिकित्सकीय सुझाव इस जानलेवा बीमारी की रोकथाम नहीं कर रही है

डॉ. वीरेन्द्र सोढ़ी

मधुमेह अमेरिका में मौत का छठवां सबसे बड़ा कारण है। साथ ही यह देश में अन्धेपन, दर्द-रहित अंगभंग और गुर्दे का खराब होने का देश का सबसे पहला कारण है। इस स्तम्भ में और अगले स्तम्भ में, हम किसी व्यक्ति में भोजन और जीवनशैली में बदलाव करके भयंकर बीमारियों के विकसित होने की सम्भावना से बचने या रोकने के तरीक़ों की चर्चा करेंगे।

मधुमेह को कई वर्गों में बाँटा गया है, लेकिन सामान्य तौर पर हम टाइप १ और टाइप २ मधुमेह के बारे में बात करेंगे। टाइप १ मधुमेह के एटियोलॉजिकल कारक आनुवंशिक, गट फ्लोरा असन्तुलन के कारण स्व-प्रतिरक्षा में समस्या और वायरल बीमारियाँ हो सकते हैं। इसका इलाज़ इंसुलिन से किया जाता है, क्योंकि अग्नाशय, जो आम तौर पर इंसुलिन उत्पन्न करता है, काम नहीं करता। वे बच्चे जिन्हें तीन माह की उम्र से पहले ही गाय का दूध दिया जाता है, उनमें उन बच्चों की तुलना में टाइप १ मधुमेह की सम्भावना अधिक होती है, जो स्तनपान करते हैं। टाइप १ मधुमेह का भोजन सम्बन्धी अन्य कारण पानी या स्मोक्ड मीट के नाइट्रेट, जो ऑक्सिडेशन के कारण अग्नाशय को नष्ट करते हैं। टाइप १ मधुमेह तुलनात्मक रूप से दुर्लभ होती है, जिसका प्रभाव मधुमेह से दस प्रतिशत कम होता है (आँकड़े अमेरिका के हैं, लेकिन यह औद्योगीकृत देशों के लिए इसी प्रकार के हैं)।

बचे हुए पीड़ित लोगों में से ९०% को टाइप २ मधुमेह होता है। टाइप २ मधुमेह वाले लोगों में कम इंसुलिन नहीं होता है; इसकी बजाय वे इंसुलिन का प्रयोग करने में असमर्थ होते हैं। इसे इंसुलिन प्रतिरोध कहते हैं। यह कई कारकों की वजह से हो सकता है, जैसे कि अधिक मात्रा में शर्करा या ट्रांस फैटी अम्लों का सेवन, ऑक्सीकरण करने वाले रसायनों का प्रयोग, और हाइपरटेंसन और हृदय रोगों में दी जाने वाली दवाओं जैसे बीटा-ब्लॉकर्स जैसी दवाओं के कारण हो सकता है।

मधुमेह और लम्बी बीमारियों में योगदान देने वाले अन्य कारक क्रोमियम जैसे अनिवार्य पोषकों की कमी, अनिवार्य वसीय अम्लों की कमी, जैसे मछली का तेल और विभिन्न फलियों और बीजों से मिलने वाला तेल, कॉफ़ी या अन्य कैफ़ीन उत्पादों का अधिक मात्रा में उपभोग या एल्कोहॉल का अधिक उपयोग।

लेकिन मोटापा अकेले ही मधुमेह का बड़ा जोख़िम कारक है। अमेरिकी सरकार के तीसरे राष्ट्रीय स्वास्थ्य और राष्ट्रीय परीक्षा सर्वे (एनएचएएनईएस III) के नतीजे इसे और अधिक स्पष्ट कर देते हैं कि मधुमेह आहार और जीवनशैली की बीमारी है। उदाहरण के लिए,  पीमा इंडियन मेक्सिको की सीमा के दोनों तरफ़ रहते हैं। वे जो एरिजोना में रहते हैं, वे एक ठेठ अमेरिकी खाना खाते हैं, जिनमें मोटे होने की ७०% सम्भावना होती है। बाईस प्रतिशत आबादी को मधुमेह है। सीमा की दूसरी तरफ़ के उनके भाई-बहन, जो अधिक प्राकृतिक आहार पर जीते हैं, उनमें मोटापे की सम्भावना १०% होती है और मधुमेह के बस एक प्रतिशत मामले होते हैं। १९८३ में, अमेरिका की आबादी का केवल १५% ही मोटापे की परिभाषा तक पहुँचता था। २००० तक, ३२% मोटे थे। आज यह ४०% है। मोटे बच्चों की संख्या चेतावनी देने वाली दर से बढ़ रही है, ऐसी ही दर उनमें टाइप २ मधुमेह की भी है।

एनएचएएनईएस III अध्ययन के मुताबिक, टाइप २ मधुमेह वाले लोगों में, ६९% लोगों ने व्यायाम नहीं किया, ६२% लोगों ने प्रतिदिन फलों और सब्जियों की पाँच से कम खुराक ली, ६५% लोगों ने प्रतिदिन ३०% से अधिक कैलोरी वसा से और कुल कैलोरी का १०% संतृप्त वसा से लिया, और ८२% का या तो वजन अधिक था या मोटे थे।

हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने ४२,००० चिकित्सकों का अध्ययन किया। उन्होंने उन्हें आहार के आधार पर दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया। एक समूह में वे लोग थे जिनमें तुलनात्मक रूप से सब्जियों, फलों, मछली, मुर्गे और साबुत अनाज का उपभोग तुलनात्मक रूप से ज़्यादा था। दूसरा समूह एक ठेठ पश्चिमी आहार लेता था, जिसमें लाल मांस, प्रक्रमित मांस, फ़्रेंच फ़्राइज, उच्च-वसा वाले डेयरी उत्पाद, शोधित अनाज, मिठाइयाँ और केक का उपभोग अधिक होता था। पश्चिमी आहार ने ही अकेले टाइप २ मधुमेह का जोख़िम ५०% बढ़ा दिया। जब आहार को कम शारीरिक गतिविधियों के साथ मिलाया गया, तो टाइप २ मधुमेह का जोख़िम लगभग दोगुना हो गया। यदि मोटापा मौजूद होता, तो जोख़िम ग्यारह प्रतिशत अधिक हो जाता!

लगभग १२ करोड़ ८० लाख अमेरिकी मोटे हैं। हमारी पोषण सम्बन्धी आदतें डरावनी हैं, और हम व्यायाम से दूर भागते हैं। कॉरपोरेट अमेरिका इसे ट्रिलियन-डॉलर व्यवसाय के एक अवसर को भुनाने के रूप में देख सकता है, लेकिन नीचे के लोगों को अपने आप ही इसे ठीक करना होगा। सरकार हमें ग़लत खाना खाने से नहीं रोक सकती और वह हमें व्यायाम न करने के लिए गिरफ़्तार नहीं करेगी। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूँ कि अमेरिकन डायबेटिक एसोसिएशन और अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन मधुमेह के रोकथाम की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल रहे। हम नयी दवाइयों से इलाज़ की बात कर रहे हैं, लेकिन परिणाम बदल नहीं रहे हैं।

आहार और ख़तरनाक स्थितियों, जैसे मधुमेह और हृदय रोग, के बीच की कड़ी का जिक्र करने वाली सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक पश्चिमी बीमारियाँ: उनका उद्भव और रोकथाम है, जिसे डेनिस बर्किट, एमडी और ह्यू ट्रॉवेल, एमडी ने लिखी है जो सबसे पहले १९८१ में प्रकाशित हुई थी। यह विश्व की विभिन्न आबादियों में रोगों की दर की जाँच के सघन अध्ययन और स्थानीय सभ्यताओं के अध्ययन पर आधारित थी। उन्होंने घटनाओं को इस क्रम में सूत्रबद्ध किया। पहले चरण में, सभ्यताएं एक परम्परागत आहार खाती हैं जिसमें पूर्ण, अप्रक्रमित खाद्य होते हैं। ख़तरनाक बीमारियों की दर जैसे हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर बहुत कम होती है। दूसरे चरण में, जब सभ्यता अधिक पश्चिमी आहार खाना शुरु करती है, तो मोटापे और मधुमेह में तेज वृद्धि होती है। तीसरे चरण में, जब लोग अपना परम्परागत आहार छोड़ देते हैं, तो कब्ज़, बवासीर, वेरिकॉज-वेन्स और अपेंडिसाइटिस जैसी समस्याएँ फैलने लगती हैं। चौथे चरण में, जब आहार पूरी तरह से पश्चिमी आहार हो जाता है, अधिक ख़तरनाक बीमारियाँ जैसे हृदय रोग, कैंसर, ओस्टियोऑर्थराइटिस, रुमेटोइड ऑर्थराइटिस और गठिया बहुत आम हो जाती हैं।

औसत अमेरिकी प्रतिवर्ष १०० पाउंड सुक्रोज का उपभोग करता है। शर्करा की यह लत संयुक्त राज्य में खराब स्वास्थ्य और ख़तरनाक बीमारियों के अत्यधिक प्रसार में प्रमुख भूमिका अदा करती है। वे खाद्य जिनमें सुक्रोज़, ग्लूकोज़, माल्टोड, लैक्टोज, फ़्रक्टोज, कॉर्न सिरप या फलों के जूस के रूप में शर्करा होता है, वे शरीर के रक्त में शर्करा की मात्रा को बढ़ा देते हैं, और शर्करा के सन्तुलन पर दबाव डालते हैं। पिछले दो दशकों के अनुसंधानों ने शोधित कार्बोहाइड्रेट (शर्करा और कम फ़ाइबर वाले स्टॉर्च युक्त भोजन) और ख़राब रक्त शर्करा नियन्त्रण के बारे में हमें नयी जानकारी दी है। नयी शब्दावलियाँ, जैसे “सिंड्रोम X” और “इम्पेयर्ड ग्लूकोज टॉलरेंस” का उपयोग रक्त शर्करा असन्तुलन के साथ ही, लिपिड की समस्याओं, रक्त शर्करा के बढ़ने और सूजन को परिभाषित करने के लिए किया जा चुका है। नुकसानदायक तेलों, योजकों और ऐसे पदार्थों वाले डिब्बाबन्द खाद्य के आविष्कार ने जिसे मानव ने पहले कभी उपभोग नहीं किया, इस समस्या को बढ़ा दिया है।

अगले लेख में हम यह चर्चा करेंगे कि अपने आहार और जीवनशैली को कैसे बदलें कि मधुमेह के विकसित होने की सम्भावना कम हो जाये।


लेखक के बारे में

डॉ. वीरेन्दर सोढ़ी के पास भारत से एम.डी. (आयुर्वेद) की उपाधि है और वह बस्टायर कॉलेज ऑफ़ नेचुरोपैथिक मेडिसिन, यूएसए से एन.डी. हैं। ई-मेल: drvsodhi@ayurvedicscience.com. वेब: www.ayurvedicscience.com.