Letters to the Editor

योग और मानव जीवविज्ञान

एक शानदार लेख “मानव जीवविज्ञान पर योग के प्रभाव” (अक्टू/नव/दिस २०२१) के लिए बहुत धन्यवाद। मैंने सचमुच इसे पढ़ने का आनन्द लिया और इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करूंगा। 

रमेश कोरिपेला

अलब्यूकर्क, न्यू मेक्सिको

rkoripella@yahoo.com


स्वास्तिक पर दृष्टिकोण

एचपीआई (हिन्दू प्रेस इंटरनेशनल) के लेख “स्वास्तिक को फिर से बदनाम करना” (३१ जुलाई, २०२०) के सन्दर्भ में: बालमोरल, स्कॉटलैण्ड, ब्रिटिश शाही परिवार के स्कॉटलैण्ड के निवास के दरवाजे के ठीक बाहर, एक पत्थर का स्मारक है जो उनकी याद में दो प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए। चबूतरे के तीन किनारों पर ढेर सारे छोटे स्वास्तिक बने हुए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि यह ब्रिटेन के भारत के साथ सम्बन्धों, और प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सेनाओं और लोगों के बलिदान के सम्मान में किया गया था।

वास्तव में, ईस्ट इण्डिया कम्पनी और उसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा भारत पर औपनिवेशिक कब्जे की हाल के वर्षों में अन्याय, शोषण और राष्ट्रीय संसाधनों की लूट के लिए उचित ही काफ़ी समीक्षा हुई। लेकिन, प्रथम विश्व युद्ध के ठीक बाद, निस्सन्देह ब्रिटिश अभी भी “ब्रिटिश भारत” को उम्मीद के साथ देते हैं, और स्वास्तिक खुदवाना एक सम्मान देने वाला कार्य है।

जब हम स्कॉटलैण्ड में रहते थे, मैं अक्सर देखा करता था कि क्या खुदाई अभी भी मौजूद है। इस आश्चर्यजनक समय में जब ऐतिहासिक सत्य और घटनाओं को खोजा और नकारा दोनों ही जा रहा है, मुझे डर था कि स्वास्तिक को “पीसी” ब्रिगेड को प्रसन्न करने के लिए हटा दिया जायेगा, उन्हीं कारणों से जिनसे भयंकर स्वार्थी, भटके हुए और संकीर्ण सोच वाले अमेरिकी इसाई शैक्षणिक दस्तावेज़ों में स्वास्तिक को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। मैं निश्चित हूँ कि ईसा ने इसका समर्थन नहीं किया होता। हम उनके और मुहम्मद द्वारा मानवता की भलाई के लिए स्थापित किये गये सत्यों से बहुत आगे आ गये हैं।

 क्लाइव और पवनेश्वरी रॉबर्ट्स

cliverobertspilot@hotmail.com


जॉन एडम्स का हिन्दू धर्म का दृष्टिकोण

यह शानदार लेख इस बात का साक्ष्य है कि कुछ अमेरिका के कुछ सबसे शानदार राजनैतिक दिमाग उस पूर्वाग्रहित विशेषता से समर्थक नहीं थे जिसका “झण्डा फहराना” अशिक्षित रूढ़िवादी पसन्द करते थे (जुल/अग/सित, २०२१)। युवा उज्ज्वल हिन्दुओं को अपने देश (सुन्दर अमेरिका) पर दावा करते और उसे प्रबोधित करने में मदद करते देखना तरोताजा कर देता है।

मेरे लिए, जो जन्म से कनाडाई है पर अमेरिका में पला है, मेरे कॉलेज के पहले वर्ष में हिन्दू चिन्तन की शक्ति सबसे ज़्यादा मुक्ति देने वाला अनुभव थी। एशियाई अध्ययन में मेरा पहला पाठ्यक्रम, जिसमें गाँधी, टैगोर और वैदिक ज्ञान से उपनिषदों के माध्यम से परिचय हुआ, उस समय के यहूदी-इसाई चिन्तन से टकरा गया। मुझे इन शिक्षाओं में अगाध सम्भावनाएँ मिलीं हो किसी भी उस चीज़ की तुलना में ज़्यादा प्रेरित करने वाली थीं जो कभी मेरे सामने आयीं।

इन सर्वसमावेशी हिन्दू परिप्रेक्ष्य को इमर्सन और थोरियो के सामने आने से आगे अंग्रेज़ी साहित्य में भी समर्थन मिला था। मैं आश्चर्य करता था कि यह सब कैसे मेरी प्रारम्भिक शिक्षा में शामिल होने से रह गया और अब उनके अथक कार्यों की प्रशंसा करता हूँ जो इसे फ़िर से सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

देवा सेयन

devaseyon@gmail.com


मैं अमेरिका में हिन्दू धर्म के बारे में जानकारी की तलाश कर रहा था और आपने इसे प्रदान किया। एडम हमारे महान संस्थापकों में से एक हैं और मैं हिन्दू धर्म के बारे में उनके विचार पढ़कर प्रसन्न हुआ। इसी तरह, ग्रीक के हिन्दू धर्म से प्रभावित होने के बारे में आपकी जानकारी शानदार थी। बहुत अच्छा कार्य। आपके कार्य के लिए धन्यवाद।

जेफ़

jkrx22@gmail.com


गंगा के किनारे

देव राज जी, मैंने आपके लेख “हरिद्वार से नीचे गंगा के कम ज्ञात किनारों पर” (जुल/अग/सित २०२१) को पढ़ने का बहुत आनन्द लिया। यह एक शानदार लेखा जोखा है। मैं बहुत गहराई से आपके रीतियों, विरासत और संस्कृति को जोड़ने के तरीक़े की प्रशंसा करता हूँ जो आक्रमणओं के बावजूद बची रही।  आपने जिस घटना का भी वर्णन किया उसके सभी आयाम थे, अवकाश, मनोरंजन और उसके बावजूद माँ गंगा के प्रति आदर, जैसा कि आपने कहा। आपके स्पष्ट वर्णन से लोगों के मन में श्रद्धा और सम्मान को आसानी से समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, पेहरान उत्सव बहुत रोमांचक है फ़िर भी सम्मानजनक भी है। इस यात्रा वृत्तांत के लिए आपका धन्यवाद!

गिरीश काले

girish.elak@gmail.com


क्या शानदार यात्रा थी! आपने गंगा को जिस तरह से महाभारत से जोड़ा, इतिहास को जीवंत कर दिया, वह मुझे पसन्द आया। आपके कठोर परिश्रम के लिए आपको धन्यवाद, विशेषकर महामारी के समय में! नमस्ते।

स्वामिनी विश्वप्रतिभा

vishwapratibhama@bhaktimarga.org


रक्षा बन्धन

रक्षा बन्धन एक विशेष दिन है। हर साल मैं इस दिन अपने भाई के साथ होने की इच्छा करती हूँ लेकिन पिछले कुछ सालों से हम ऐसा करने में सक्षम नहीं रहे हैं। खूबसूरत ब्लॉग “रक्षा बन्धन, परिवार का उत्सव” (अक्टू १९९४) साझा करने के लिए धन्यवाद।

राशि

123rashikajain@gmail.com


नेपाल के युवा आवाज उठाते हैं

नेपाली हिन्दुओं के बारे में लेख (अप्रैल/मई/जून २०२१) बहुत अच्छे से लिखा गया था। मुझे नेपाली हिन्दुओं और उनकी परम्परा के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। मैं एक भारतीय हिन्दू हूँ और मैंने हाल ही में हिन्दुइज़म् टुडे पत्रिका के बारे में जाना है। मैं आशा करता हूँ कि मैं भविष्य में इस पत्रिका के माध्यम से दुनिया भर में हिन्दू धर्म के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करूंगा।

हर्षित श्रीवास्तव

srivastavamanish331@gmail.com


सत्संग के बारे में बयान

बहुत अच्छे ढंग से लिखा गया लेख “कैसे सत्संग ने मुझे बेहतर हिन्दू बनाया” (अक्टू/नव/दिस २०२०) बहुत से हिन्दुओं के विचारों को दर्शाता है। इतना विनम्र होने के लिए लेखक को सलाम

सपना कुमारस्वामी

sapnakumar2728@gmail.com


परमहंस योगानन्द

परमहंस योगानन्द के जीवन और शिक्षाओं के बारे में शानदार विषय वस्तु प्रस्तुत करने के लिए आपका धन्यवाद। इसमें कई वर्षों का शोध दिखाई देता है, जो यहाँ खूबसूरती से व्यक्त किया गया है।

राजीव प्रसाद

rprasad100@att.net


शाश्वत ज्ञान का प्रसार —इस बदलते हुए समय में भी

इस पन्ने पर पिछले अंकों में हमारे प्रकाशक सद्गुरु बोधिनाथ वेलनस्वामी ने व्याख्या की थी कि कैसे आधुनिक प्रवृत्तियाँ प्रकाशन उद्योग की अर्थव्यवस्था को चुनौती दे रही हैं। नीचे, वह दो प्रमुख प्रवृत्तियों को चित्रित करते हैं जिन्होंने हिन्दुइज़म् टुडे को विशेषतः इस समय अधिक ज़रूरी और आपकी सहयाते के योग्य बना दिया है.­

चूंकि दुनिया लगातार तेज़ी से बदलती जा रही है, ऐसा लगत है—हमारी पत्रिका को भी बदलाव को अपनाने की ज़रूरत है। दो महत्वपूर्ण समकालीन प्रवृत्तियाँ हैं जिन पर हम विशेष तौर से ध्यान दे रहे हैं ताकि हम हमेशा महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बने रहें।

उनमें से एक आज के हिन्दुओं, और विशेष तौर पर युवाओं के बीच चिन्हित प्रवृत्ति है, अपने द्वारा बनाये गये विश्वासों और तौर-तरीक़ों के लिए पारम्परिक धर्म को छोड़ देना। जो लेख हमने प्रकाशित किये हैं, बहुत से भारतीय और नेपाली युवा स्वयं को “आध्यात्मिक परन्तु धार्मिक नहीं” घोषित करते हैं, उदाहरण के लिए, वे मन्दिर में पूजा की जगह सामूहिक ध्यान को प्राथमिकता देते हैं। दिवंगत और प्रतिष्ठित राम स्वरूप ने बहुत समझदारी से कहा था, “हिन्दू धर्म सभी तलाश करने वाले हृदयों में रहता है और जब कभी ईश्वर के लिए किसी की तलाश आध्यात्मिक हो जाती है, हिन्दू धर्म अपने आप पल्लवित हो जाता है। किसी आदमी के अन्तरतम के सत्य को उससे अलग कैसे रखा जा सकता है? और कितने समय तक?” हिन्दुइज़म् टुडे का इस विषय पर लेख की सनातन धर्म की प्रगाढ़ आध्यात्मिता जो व्यक्ति के भीतर निवास करती है, बुद्धिमान साधकों का उपयोगी मार्गदर्शन कर सकती है क्योंकि वे अपनी आत्मा की तलाश में पाते हैं कि वे हिन्दू धर्म के मूल विश्वास कर्म, पुनर्जन्म और सर्वव्यापी दैवत्व को मानते हैं।

हिन्दुओं के भीतर की दूसरी प्रमुख प्रवृत्ति नियमित तौर पर किये जाने वाले कार्यों से परहेज करना है। हमारे अक्टू/नव/दिस २०२१ अंक में, अमर शाह, जो नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में हिन्दू पुरोहित हैं, ने लिखा था, “आप जो पोस्ट करते हैं उसका अभ्यास कीजिये!” वह समझाते हैं कि “हमारे अनगिनत व्यक्तित्वों के हिसाब से साधनाएँ कई गुना और बहुआयामी होती हैं: पूजा, जप, ध्यान और स्वाध्याय वे कुछ हैं जो हमारे मन में आती हैं। जैसा कि मेरे गुरु ने इसे इतने अच्छे से रखा है–हिन्दू धर्म के साधना की श्रृंखला किसी पाकशाला की तरह है! वैसे ही जैसे दक्षिण भारतीय प्राकृतिक रूप से ताजी इडली की ओर खिचेंगे, और उत्तर वाले पनीर युक्त ग्रेवी को देखें, हम सबमें प्राकृतिक तौर पर अलग-अलग साधनाओं के साथ अनुकूलन होता है। इतनी विविधता उपलब्ध होने के कारण, हमें कम से कम एक अभ्यास को चुनना चाहिए, स्वयं को तीक्ष्ण करना चाहिए, और आत्म-अनुभव की गहराइयों से बोलना चाहिए।.”

यहाँ फ़िर से, हिन्दुइज़म् टुडे सहायक है। यह विभिन्न प्रकार के अभ्यासों को प्रकाश में लाता है और साथ ही उन भक्तों के व्यक्तिगत साक्ष्य के साथ पूरक भी देता है जिन्होंने उन्हें सार्थक पाया है।

आप हिन्दुइज़म् टुडे के वित्त को ताकत प्रदान करने में यहाँ सहायता कर सकते हैं जिससे यह इस चुनौतीपूर्ण समय में भी गतिशील ढंग से हिन्दू धर्म की मज़बूत, स्पष्ट आवाज़ बना रहेगा: donate.himalayanacademy.com.

या हमसे सम्पर्क करें:      +१-८८८-४६४-१००८ • support@hindu.org