You Are All Things

मण्यम सेव्लन

उस परमशक्ति के बारे में एक वैदिक चिन्तन जो सभी अस्तित्वमान चीज़ों में मौज़ूद है

यह स. राधाकृष्णन के प्रमुख उपनिषद के श्वेताश्वतर उपनिषद के अध्याय चार का अनुवाद है। यह उपनिषग शुक्ल यजुर्वेद से सम्बन्धित है। इन पदों में स्पष्टता के लिए बदलाव किया गया है। 

१. वह परमपिता हमें स्पष्ट समझ प्रदान करे जो एक है, जिसका कोई रंग नहीं है; उस परमपिता द्वारा जो, अपनी शक्ति के कई गुना प्रयोग द्वारा, अपने गूढ़ उद्देश्यों में बहुत से रंग भरता है; वह जिसमें सम्भावित ब्रह्माण्ड का आदि और अन्त समाहित है।

२. वह वास्तव में अग्नि है, वह सूर्य है, वह वायु है और वह चन्द्र है। वही, वास्तव में, शुद्ध है। वह ब्रह्मा है। वही जल है। वह सृजन का देवता (स्रष्टा) है।

३. तुम एक स्त्री हैं। तुम पुरुष हो। तुम युवक भी हो और युवती भी। तुम, एक सहायक की सहायता से लड़खड़ाकर चलने वाले वृद्ध हो। तुम सबमें जन्म लेते हो, तुम हर दिशा में होते हो।

४. तुम गहरी नीली चिड़िया हो, तुम लाल आँखों वाले हरे तोते हो। तुम बादल हो जिसने अपने अन्दर तड़ित धारण कर रखा है। तुम मौसम हो और तुम्हीं समुद्र हो। तुम अनादि हो, और सर्वत्र उपस्थित हो। सम्पूर्ण विश्व तुमसे ही जन्मा है।

५. वह जो अजन्मा है, लाल, श्वेत और काला है। तुम बहुत सी आत्माओं को उत्पन्न करते हो जो रूप में तुम्हारे ही समान हैं। वह जो अजन्मा है, सदैव प्रसन्नता में रहता है। आत्मा भी प्रसन्नता में रह सकती है, गतिविधियों में फँसकर और इसे छोड़कर, अपने आनन्द को पूरा करके।

६. दो पक्षी, साथी जो हमेशा एक साथ रहते हैं, एक ही वृक्ष से चिपके रहते हैं। इन दोनों में से, एक मीठा फल खाता है और दूसरा बिना खाये रहता है।

७. उसी वृक्ष पर, एक व्यक्ति दो संसार के दुख में डूबा हुआ है और अपनी असहायता के कारण भ्रमित और दुखी है। जब वह दूसरे को देखता है, जो सांसारिक क्रियाओं को फल को नहीं खाता—ईश्वर जिसकी पूजा होती है और जो महान है—वह दुखों से मुक्त हो जाता है।

८. क्योंकि वह जो ऋगवेद के अविनाशी जीव को नहीं जानता, नहीं जानता कि सर्वोच्च स्वर्ग में देवता कहाँ रहते हैं, उसको ऋगवेद का क्या लाभ है? वे जो वास्तव में इसे जानते हैं, पूर्णता को प्राप्त हो जाते हैं।

९. वेद, यज्ञ, प्रथाएँ, संस्कार, भूत, भविष्य और जो वेद कहते हैं, यह सब है जो स्रष्टा से इसमें से बाहर निकाला है, इसमें जो अन्य है वह माया में हैं।

१०. यह जान लो कि पदार्थ माया है और माया से रक्षा करने वाला महान ईश्वर है। इस संसार में जो जीव हैं, वह सब उसके अंश हैं।

११. एक, जो हर एक स्रोत पर शासन करता है, जिसमें यह सब अन्त में मिल जाता है और सृष्ट के निर्माण पर एक हो जाता है, वह जो ईश्वर है, जो आशीर्वाद देने वाला है, वह पूज्य ईश्वर—उसे जानने के बाद मनुष्य को सदा के लिए शान्ति मिल जाती है।

१२. वह जो देवताओं का स्रोत और मूल है, सबका स्वामी, रुद्र, महान द्रष्टा, जो, जब उसने जन्म लिया था, वह स्रोत को देख रहा था, स्वर्णिम, ब्रह्माण्ड को, वह हमें स्पष्ट समझ प्रदान करे।

१३. वह जो ईश्वरों का ईश्वर है, जिसमें संसार निवास करता है, जो सभी दोपाये और चौपाये जीवों का देवता है, ईश्वर को हम क्या नैवेद्य चढ़ा सकते हैं?

१४. सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, सभी भ्रमों के बीच, सभी का निर्माता, कई रूपों का, सब कुछ स्वीकार करने वाला, उस पवित्र को जानकर, व्यक्ति को सदा के लिए शान्ति प्राप्त हो जाती है।

१५. वह वास्तव में वर्तमान संसार का रक्षक है, सबका ईश्वर, जो सभी चीज़ों में व्याप्त है, जिसमें ब्राह्मणों के द्रष्टा और देवता एकाकार होते हैं। इस प्रकार उसे जानने से, व्यक्ति मृत्यु के पाश से मुक्त हो जाता है।

१६. उसको जानकर, उस पवित्र को, जो हर जीव में उसी तरह छिपा हुआ है जैसे घी से निकलने वाली बहुत पतली परत हो, जिसने ब्रह्माण्ड को स्वयं में व्याप्त कर रखा है, ईश्वर को जान लेने से व्यक्ति हर बन्धन से मुक्ति पा जाता है।

१७. वह ईश्वर, जो सभी चीज़ों का निर्माण करने वाला है, महान स्व, जो प्राणियों के हृदय में सदैव निवास करता है, वह विचारों, हृदय और मस्तिष्क द्वारा ढाला जाता है। वे जो उसे जानते हैं, वे अमर हो जाते हैं।

१८. जब कोई अँधेरा न हो, तब न तो दिन होता है और न ही रात, न ही जीव होते हैं और न ही अजीव, केवल वह पवित्र ही अकेले होता है। वह अविनाशी है, सावित्री का वह पूज्यनीय प्रकाश जिससे प्राचीन बुद्धिमत्ता ने जन्म पाया था।

१९. न तो उसे कोई ऊपर देख सकता है, न आर-पार, न ही मध्य में, न ही कोई उसे पकड़ सकता है। उसके जैसा वास्तव में कुछ ही भी नहीं है, वह जिसका नाम अपरम्पार वैभव वाला है।

२०. उसका फॉर्म देखना नहीं है; कोई उसे आँखो से नहीं देख सकता है। वह जो अपने हृदय और मन से जानते हैं कि वह हृदय में निवास करने वाला है, अमर हो जाते हैं।

२१. “तुम अजन्मे हो”—इस चिन्तन के साथ भयभीत व्यक्ति आपकी तरफ़ आता है। हे रुद्र, आपका मुख जो उदारता का प्रतीक है, मेरी सदा रक्षा करे।

२२. रुद्र, किसी भी बालक या अबोध बालक को, जीवन को, पशुओं या घोड़ों को हानि न पहुँचाओ। हमारे वीरों का वध न करो, क्योंकि हम हमेशा तुम्हें बलि चढ़ाते हैं।


सर्वपल्ली राधाकृष्णन (१८८८-१९७५) एक भारतीय दार्शनिक और राजनेता थे, जो भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति (१९५२–१९६२) और द्वितीय राष्ट्रपति (१९६२–१९६७) थे।