प्रकाशक के डेस्क से

गणेश के समीप होना

______________________

कैसे निष्ठा से उनके पास उनको सचमुच का मान के जानने से विघ्नविनाशक भगवान से हम अपने रिश्तों को गहरा कर सकते हैं

______________________

द्वारा सतगुरु बोधिनाथा वेय्लान्स्वामी


Read this article in:


English |
Hindi |
Gujarati |


image

Watch the Video

थाईलेंड जो कि मुख्य रूप से एक बौद्ध देश है , में हिन्दूइज़्म , पिछले कुछ वर्षों में हिन्दूइज़्म टुडे पत्रिका में कई लेखों का विषय रहा है। कई लोगों को आश्चर्य होगा , देश में बड़ी संख्या में हिन्दू मंदिर हैं , जिनमें बैंकॉक के व्यावसायिक केंद्र के बीचोंबीच स्थित एक बड़ा एवं अलंकृत गणेश मंदिर है। हमारे पत्रकार नें कई सारे थाई लोगों से पूछा कि देश में क्यों बहुत सारे लोग हिन्दू मंदिरों में नियमित रूप से पूजा करते हैं। इसका एक सामान्य जवाब मिला , “ बुद्ध की पूजा जहाँ एक ओर हमें विशुद्ध आध्यात्मिक रूप से सहायक होती है , जबकि हिन्दू देवताओं की पूजा हमें दैनिक जीवन में मदद करती है।”

मेरे गुरुदेवा सिवाय सुब्रमुनियस्वामी नें भी इसी विचार पर ज़ोर दिया : “सारे अद्भुत देवी देवताओं में , भगवान गणेश भौतिक स्तर की चेतना के सबसे करीबी हैं , इनसे बहुत आसानी से संपर्क किया जा सकता है और दिन प्रतिदिन के हमारे जीवन और चिंताओं में सहायता करने में अति सक्षम हैं। भगवान गणेश की पूजा भक्तों को स्वाभाविक रूप से अन्य महान भगवानों की और ले जाती है….. भगवान गणेश एक महादेव हैं, एक महान भगवान हैं , जिनको भगवन शिव नें उत्पन्न किया है आत्माओं को क्रमागत उन्नति में सहायक होने के लिए। वे हाथी की शक्ल वाले कला और विज्ञानं के संरक्षक हैं , बाधाओं के भगवान हैं और धर्म के रखवाले हैं , शिव के पहले पुत्र हैं। उनकी इच्छा तीनों लोकों में कायम रहती है न्यायपरायणता के बल के रूप में , शिव के कार्मिक कानून के अवतार के रूप में।”

बहुत से महान हिन्दू साधुओं और संतों नें भगवान गणेश के दिव्य दर्शन किये थे और उसे अपने अनुयायिओं के साथ बाँटा भी था, जिससे उनका हिन्दू भगवानों में विश्वास मज़बूत हुआ और उनकी समझ को भी विस्तृत किया।

प्राचीन समय में औवैयार , एक तमिल रहस्यवादी जिनको गणेश के दिव्य दर्शन हुए थे , उन्होनें अपने अनुभव को भक्तिमय कविताओं द्वारा साँझा किया था। “विनायगा अहवाल” में उन्होंने लिखा , “इसी पल तुम्हारा हो जाने की इच्छा होती है , आप , माँ की तरह , मेरे समक्ष प्रगट हुए हो और मेरे अंतहीन जन्मों की भ्रांतियों की कटौती कर दी है।”

आधुनिक समय में , गुरुदेवा नें अपने रहस्यवादी दृष्टिकोण और गणेश से जुड़े अनुभवों को एक किताब द्वारा साँझा किया जिसका नाम है लविंग गणेशा : “बहुत से उदार हिन्दू या फिर पश्चिम से प्रभावित हिन्दू हैं, जो नहीं सोचते कि गणेश सचमुच असली हैं। उनके लिए वो एक प्रतीक हैं , एक अन्धविश्वास हैं, एक तरीका हैं बच्चों और अशिक्षितों को दर्शन समझने का। परन्तु मेरा अपने प्यारे भगवान के प्रति यह अनुभव नहीं है। मैनें उन्हें स्वयं अपनी आँखों से देखा है। वे मेरी दृष्टि में कई बार आये हैं और मेरे निचले मन को अपनी वास्तविकता से आश्वस्त किया है।”

images

SHUTTERSTOCK

A global God: Lord Ganesha embodied in an elegant life-like statue gracing the town of Kuta, Bali, Indonesia. The golden writing on His trunk includes the Sanskrit Aum.

सन 1969 से हमने भारत के लिए सामूहिक तीर्थयात्राओं की व्यवस्था की , जहाँ सैलानी जिज्ञासुओं नें भगवान गणेश और अन्य ऐसे देवताओं के जीवन परिवर्तित कर देने वाले दृश्यों को देखा। ऐसी अंतर्दृष्टि , तीर्थयात्रा की गहराई और आंतरिक चेष्टा से पैदा हुई, यह अक्सर आती थी पत्थर या कांस्य की मूर्ति के हिलने और उनकी और देख के मुस्कुराने से , या फिर चेतन हो के मनुष्य जैसे आकार को ग्रहण करने से। अपनी आँखे बंद करके कुछ भक्त देवता के चेहरे को आंतरिक रूप से ऐसे देख पाते जैसे किसी जीवित व्यक्ति को देख रहे हों।

जबकि बहुत से लोगों को ऐसी शक्तिशाली अंतर्दृष्टि नहीं होती , वर्ष 1995 में सैंकड़ो हज़ारों हिन्दुओं नें दुनिया भर के मंदिरों में बड़े तरीके से प्रचारित होने वाले दुग्ध चमत्कार को अपनी आँखों से देखा। उन्होंने भक्तों को भगवान गणेश की मूर्तियों को दुग्ध अर्पित करते हुए देखा जिन्होंने वास्तविकता में दूध पिया। यह उल्लेखनीय दृष्य वीडियो कैमरों नें रिकॉर्ड किया और दुनियाँ भर के मीडिया नें अच्छी तरह रेखांकित किया। इससे बहुत से लोगों के भगवान गणेश के सचमुच होने का विश्वास बढ़ा।

दक्षिण भारत के प्राचीन मंदिरों में भारी संख्या में उपस्थित लोगों प्रेरणादायक भाषण देते हुए गुरुदेवा नें समझाया कि पत्थर या धातु से बनीं देवताओं की छवियाँ केवल मात्र भगवानों की प्रतीक ही नहीं ; ये वह रूप हैं जिससे उनका प्रेम , शक्ति और आशीर्वाद इस दुनियां में बहता है। यह जानना कि भगवान वास्तविक प्राणी हैं और मंदिर में जाने का उद्देश्य उनके आशीर्वाद को अनुभव करना है , भक्त के लिए एक मंदिर को एक सांस्कृतिक हॉल से , सच्चे मायनों में एक पवित्र स्थान में परिवर्तित कर देता है। कुछ पाठक आश्चर्य करेंगे कि मेरा यह कहना कि भगवान गणेश और अन्य भगवान सचमुच के प्राणी हैं , इससे मेरा क्या तात्पर्य है। अगर वे सचमुच के हैं, तो वे कहाँ रहते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए , आइये हम कुछ पृष्ठभूमि प्रदान करते हैं। हिन्दू शास्त्र तीन अस्तित्व की दुनियां बताते हैं : शारीरिक अस्तित्व , सूक्ष्म या नक्षत्रीय अस्तित्व एवं कारण सम्बन्धी अस्तित्व।

भौतिक अस्तित्व वो है जो दुनियाँ हम अपनी पांच इन्द्रियों से अनुभव करते हैं , देखने का क्षेत्र , सुनना, सूंघना , चखना और छूना। तीनों दुनियां में से , यह सबसे अधिक सीमित , सबसे काम स्थायी और सबसे ज़्यादा बदलाव वाली है। भौतिक अस्तित्व के भीतर ही सूक्ष्म एवं नक्षत्रीय अस्तित्व मौजूद हैं ,

यह हैं मानसिक और भावनात्मक क्षेत्र। हम इसी क्षेत्र में कार्य करते हैं विचार और भावना के द्वारा और पूरी तरह रहते हैं, निद्रा के दौरान और मृत्यु के उपरांत। वहां हमारे नक्षत्रीय शरीर द्वारा हम दूसरी उन आत्माओं से मिलते हैं जो सो रही हैं या मृत्यु को प्राप्त हो चुकी हैं और उनके भौतिक शरीर नहीं होते। हम बराबर इस बीच की दुनियां में कार्य करते हैं अपने हर विचार और भावना द्वारा।

नक्षत्रीय अस्तित्व के गहरे भीतर, कारण का अस्तित्व रहता है – प्रकाश और आशीर्वादपूर्णता का , जो कि स्वर्गीय क्षेत्रों में उच्चतम है , सभी धर्मों के शास्त्रों में इसका गुणगान किया गया है। यह वो परम चैतन्य की दुनियां है , जहाँ भगवान और अत्यधिक विकसित आत्माएं निवास करती हैं ! यह वो दुनियां है जिसको हम गहरी साधना और मंदिर की पूजा द्वारा हासिल करना चाहते हैं, जो कि भगवानों के आशीर्वाद के माध्यम को खोल देती है। यह सबसे परिष्कृत क्षेत्र दूर नहीं है। यह हमारे अंदर मौजूद है हमारे दिव्य स्वयं के निवास के रूप में , हमारी शुद्ध अमर आत्मा के रूप में।

मेरे गुरुदेवा अक्सर कहते थे कि धर्म तीनों दुनियां का मिल कर कार्य करना है। एक पवित्र मंदिर में , हम आसानी से भगवानों और देवों का अनुभव कर सकते हैं एक उत्थान करने वाली , शांतिमय , दिव्य ऊर्जा , या शक्ति का , जो कि कारण के स्तर से मुखरित होती है। इन आशीर्वादों को पूजा के उच्चतम बिंदु पर आसानी से महसूस किया जा सकता है , जब ज्योति को देवता के समक्ष रखा जाता है , या पूजा के बाद , मीमांसा के मौन क्षणों में। भगवान गणेश की शक्ति एक सौम्य , सुखदायक बल है। विघ्ननाशक भगवान के साथ एक सूक्ष्म मुलाकात भी हमें मूलाधार चक्र की सुरक्षित चेतना में लाने की शक्ति रखती है , स्मृति बल का वो केंद्र जहाँ गणेश निवासते हैं ! यह आशीर्वाद हमें सात निम्न चक्रों के ऊपर रखता है , जो घर हैं निम्न भावनाओं जैसे कि ईर्ष्या , भय एवं क्रोध।

तमिल की एक कहावत है , “गणेश मेरे सहायक हैं”, “गणपति तुनै”, जो यह विचार बताती है कि भगवान गणेश हमारी देखभाल करते हैं और हमारी ज़िंदगी में सब चीज़ों पर अच्छा प्रभाव डालते हैं। आप भगवान गणेश से एक करीबी रिश्ता बना सकते हैं , जिसमें कि एक अच्छे दोस्त की तरह महसूस करें , अगर आप उनको भक्ति योग के द्वारा जान सकें , भक्ति के अनुशासनों के अभ्यास से , पूजा , सिमरन और गायन के द्वारा जिनका उद्देश्य होगा ह्रदय में प्रेम को जाग्रत करना और स्वयं को देवता की कृपा के लिए खोलना।

2200 वर्ष पुराना दक्षिण भारतीय शास्त्र तिरुमंतिराम यह घोषणा करता है , “पंचमुखी है वह , हाथी के सर वाला , हाथी दन्त बाहर निकले हुए , चंद्राकार , शिव का पुत्र , बुद्धि का फूल ; अपने हृदय में प्रतिष्ठित , उसके चरणों का मैं यशगान करता हूँ !”