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कई व्यक्ति यह पाते हैं कि वे जब ध्यान करने के लिए बैठते हैं तो उनका मन लगातार अतीत और भविष्य कि घटनाओं के बारे में सोचता रहता है. उनको एहसास होता है कि उनकी मानसिक शक्ति गंभीर रूप से छितरी हुई है जबकि उसको तीव्रता से केन्द्रित होना चाहिए. चाहे यह कम स्पष्ट हो, ऐसा तब भी हो सकता है जब हम एक मंदिर कि यात्रा करते हैं. मेरे गुरु , सिवाय सुब्रमुनियस्वामी इस घटना का एक अंतर्दृष्टिपूर्ण विवरण प्रदान करते हैं. आप कितनी बार मंदिर गए होंगे जब आप पूर्णतया वहां नहीं थे. आपका एक भाग वहां था , एक भाग अतीत में रह रहा था, एक हिस्सा भविष्य में रहने की कोशिश कर रहा था ; और वहां थे आप , भावनात्मक रूप से उन चीज़ों के बारे में विश्लेषण करते हुए जो कि हुईं पर जिन्हें नहीं होना चाहिए था, और उन चीज़ों के बारे में जो भयावह हैं और भविष्य में हो सकती हैं , जो कि शायद ना हों जब तक की आप उनके होने के डर से डरते रहें , जबतक की आप उन्हें निर्मित ही ना कर दें.

मन को केन्द्रित करना , विचारों को नियंत्रण में रखना, यह साफ तौर पे सफल ध्यान की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है. यह तथ्य कि पातंजलि नें अपने योग सूत्रों के पहले सूत्र के तौर पर इसे चुना दर्शाता है कि ध्यान की प्रक्रिया में इसका कितना महत्व है : योग मन को विभिन्न प्रकार के रूप धारण करने से रोकता है. ध्यान कि प्रक्रिया में सफल होने में हमारी सहायता करने के साथ ही एक केन्द्रित मन हमको कई और तरीकों से भी लाभान्वित करता है. एक केन्द्रित मन के साथ हम अपने कार्य की बाहरी गतिविधियों एवं स्कूल की गतिविधियों , दोनों में ही सफल होंगे. इसका एक अन्य फायदा यह होगा कि एक केन्द्रित मन , एक शांतिपूर्ण एवं संतुष्ट मन होगा. इस शांतिपूर्ण मंच से हम अपने भीतर कि ओर मुड़ सकते हैं और आसानी से अपने अंतर्मन, अपनी परा चेतना , अंदरूनी आवाज़ से संपर्क साध सकते हैं और उस ज्ञान एवं रचनात्मकता से लाभान्वित हो सकते हैं जो यह हमें प्रदान करता है.

अपनी मानसिक विचालितता जिसे आप अनुभव कर रहे हों, को मापने का एक अच्छा तरीका होगा छोटे बच्चों के साथ बाहर निकल कर चलना. वे हमेशा आसपास के परिवेश की बारीकियों को बेहतर तरीके से देख पाएंगे , आपके मुकाबले , क्योंकि उनके मन अभी अतीत एवं भविष्य की चिंताओं की ओर आकृष्ट नहीं हो रहे होंगे. अपने मन को उद्देश्यओं पर केन्द्रित करके , वो मन जो लगातार अतीत एवं भविष्य के चिंतन में नहीं भटक रहा , क्या यह कुछ ऐसी तकनीकियाँ हैं जिन्हें हम अपने विचारों को एकत्रित करने के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं ?

अतीत से समन्वय साधना : हम पहले यह देखते हैं कि हम अतीत के गैर ज़रूरी विचारों पर कैसे विजय प्राप्त कर सकते हैं. अक्सर हम अतीत की घटनाओं के बारे में सोचते हैं क्योंकि उनका समाधान नहीं हो पाया है. यह ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें हम पूरी तरह से समझ नहीं पाए या स्वीकार नहीं कर पाए. अतीत को स्वीकार करने से स्वतंत्रता और स्पष्टता प्राप्त होती है, जैसे के पातंजलि नें व्याख्या की है – जैसे ही आध्यात्मिक अनुशासन से सारी अशुध्ताओं को हटा दिया जाता है , योग के अंगों द्वारा अध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त होगी जिससे आत्मा के प्रकाश देने वाले ज्ञान को देखा जा सकेगा.

यह अंतर करना सहायक होगा कि हाल में कौन सी अनसुलझी घटनाएं हुईं एवं कौन सी घटनाएँ काफी समय पहले हुई थीं. अवचेतन मन काफी हफ़्तों तक दिन में कई बार
हाल कि घटनाओं को चेतन मन के समक्ष प्रस्तुत करता रहेगा. यह एक साफ इशारा होगा कि एक अनुभव स्वीकार नहीं किया गया है. कुछ हफ़्तों के बाद अवचेतन मन इस अनुभव को बार बार याद दिलाना बंद कर देगा एवं अनुभव को दबा देगा. दबे हुए अनुभव अवचेतन मन में इकट्ठे हो कर एक चिंतित और परेशान प्रकृति का निर्माण करते हैं.

इसलिए अच्छा होगा कि हर अनुभव को हाल करने का प्रयास उसी समय किया जय जब अवचेतन मन द्वारा उसको याद दिलाने कि प्रक्रिया जारी हो , न कि केवल मात्र इंतजार किया जाये और घटना को भुला दिया जाये. अक्सर इसका हल निकलने के लिए उन लोगों से बातचीत करना कारगर होता है जो इस मुद्दे में शामिल हों. अगर हमने किसी कि भावनाओं को आह़त किया है तो माफ़ी मांगना उचित होगा. अगर हमारी भावनाएं आह़त हुईं हैं तब हमें दूसरों को क्षमा करने कि आवश्यकता होगी. इस प्रकार से अनुभव का भावनात्मक पहलु सुलझाया जा सकेगा और मामला सुलझ जायेगा.

जो अनुभव सुलझे नहीं हैं और कुछ समय पहले हुए थे , वे भी मन में आयेंगे , परन्तु वे हाल के अनुभवों से कम मात्र में आयेंगे. सामान्य तौर पर यह उपयुक्त नहीं होगा कि माफ़ी मांगी जाये या कि माफ़ी दी जाये, क्योंकि दुसरे लोगों को यह समझ नहीं आयेगा कि हम मुद्दे को इतने समय के बाद क्यों उठा रहे हैं. एक अच्छा विकल्प यह होगा कि अपने अतीत की कोई भी बात जो हमें परेशान कर रही हो उसको लिखा जाये और जिस कागज़ पर लिखा जाये, उसे जला दिया जाये, यह अपेक्षा करते हुए की उस अनुभव की याद निष्प्रभावी हो जाएगी. आप अपने अवचेतन मन के साथ किये इस कार्य में सफल होंगे तो आपको पिछली बात याद तो रहेगी पर बिना उससे जुडी भावनाओं से.

अतीत को सुलझाना जितना कोई उम्मीद कर सके उससे बड़ी चुनौती हो सकता है. एक आम समस्या आती है जब हम अपने आपको एक ऐसे पिता को माफ़ करने में असमर्थ पाते हैं जिसने हमारे साथ अपमानजनक बर्ताव किया हो. एक सहायक दार्शनिक दृष्टिकोण यह होगा क़ी हम कर्म के कानून पर ध्यान केन्द्रित करें एवं यह मानें क़ी हमने अतीत में ऐसा कुछ किया जिसके कारण वर्तमान में हमें इन अनुभवों का सामना करना पड़ा. हमारे पिता सिर्फ एक माध्यम थे जिनके द्वारा हमें उस कर्म का अनुभव करना पड़ा. बजाय इसके कि हम एक अनुत्पादक तरीके को जारी रखते हुए और उन पर दोषारोपण करें , हमें अपने भीतर उनका धन्यवाद् करना चाहिए कि उन्होंने हमें हमारे मुश्किल कर्मों से आमना सामना करने का एक अवसर प्रदान किया. यह आश्चर्यजनक है कि उस चीज़ के प्रति सिर्फ हमारे रवैये में साधारण से परिवर्तन से कैसे उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया में परिवर्तन आ सकता है.

भविष्य पर लगाम कसना : हम कैसे अनावश्यक विचारों पर काबू पा सकते हैं , विशेष तौर पर भविष्य के प्रति अपनी नकारात्मक अपेक्षाओं से ? बहुत से ऐसे विचार चिंता की श्रेणी में आते हैं. हमें चिंता होती है की कुछ घटनाएं घाट सकती हैं, इसके लिए हम कभी कभी भयभीत होने की हद तक भी चले जाते हैं. एक उपाय जिस पर गुरुदेव जोर देते थे व़ेह था एक साधारण तरीके से अपने मन को समझाना. जब कभी मन चिंता करना शुरू कर दे, स्वयं को कहो , में अभी, इस समय, बिल्कुल ठीक हूँ. इस मन को समझाने वाले विचार को बार बार दोहराते रहें जब तक की आप आश्वस्त ना हो जाएँ क़ि इस वर्तमान पल में सब कुछ ठीक ठाक है.

अपने प्रमुख निर्णयों पर चिंतन करना भविष्य के बारे में एक दूसरे तरीके क़ि चिंता करना है. एक आम तरीका है निर्णय के बारे में पुनर्विचार करना लेकिन बजाय उस पर पूरी तरह बिना सोचे और बिना किसी निष्कर्ष के निकाले, एक विषय से दूसरे विषय पर हर बार कूदते रहना. जिससे की यह चिंता का एक स्रोत बन जाता है. इस विषय को सुलझाने का एक प्रभावी तरीका होगा अपने आप से एक औपचारिक समय निश्चित करना जब आप विषय पर पूरा ध्यान केन्द्रित करने के लिए स्वतंत्र हों, उदाहरण के लिए शनिवार की सुबह १० बजे. अगर इससे पूर्व आप इस विषय पर अपने को सोच विचार करते पायें तो अपने मन को यह कहते हुए अनुशासित करें कि इस विषय पर फैसला करने के लिए मेरा १० बजे एक औपचारिक समय निश्चित है और इसलिए इसके बारे में इस समय सोचना ठीक नहीं होगा.

यह एवं दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल करके मन को वर्तमान में केन्द्रित किया जा सकता है बजाय इसके कि वो अतीत या भविष्य में डेरा जमाये रखे. एक बार जब अतीत एवं भविष्य कि खींचतान को वश में कर लिया जायेगा , हम विभिन्न प्रकार के सोच विचार को कम कर पाएंगे जो कि अभी के लिए हों, जैसे के आज के लिए योजनायें या फिर टी वी पर कल रात को देखी गयी खबरें. इन्हें प्राणायाम , साँस के नियंत्रण से काबू किया जा सकता है. एक सरल , प्रभावी तकनीक है नौ बार गिनती से भीतर सांस लेना , एक बार कि गिनती से रोकना , फिर नौ बार कि गिनती से साँस बहार छोड़ना और एक बार कि गिनती से उसे लोके रखना. कुछ समय इस प्रकार से सांस लेने से आपके सोचने की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से शांत हो जाएगी.

जब हम मन को वर्तमान में केन्द्रित करने में सफल हो जाते हैं एवं विभिन्न प्रकार के विचारों के कोलाहल से उसे शांत कर देते हैं , हमें एक उच्च स्तर की चेतना का अनुभव प्राप्त होता है. गुरुदेव इसे सैदेव रहने वाला वर्तमान कहते थे : मन अतीत में रहता है और मन भविष्य में रहने की चेष्टा करा है. परन्तु जब आप अपने मन को शांत कर लेते हैं, आप वर्तमान में रहते हैं. आप अपनी आत्मा के भीतर रहते हैं या फिर उस उच्च मन की अवस्था में रहते हैं जो समय की चीज़ों से विचलित नहीं होता.

पर्वत के ऊपर से लिया गया परिपेक्ष : जब हम अपने आप को अतीत और भविष्य के बखेड़ों से स्वतंत्र कर लेते हैं तो एक क्षमता जो हमें उपलब्ध हो जाती है वो है कि हम स्पष्ट रूप से अपनी और दूसरों कि ज़िन्दगी किस ढर्रे पर चल रही है, उसे देख सकते हैं. इसे मुहव्रात्मक तरीके से कहा जाय तो हम इस क्षमता का विकास कर लेते हैं कि पेड़ों की बजाय जंगल को देख सकें. अपने शुरुआत के अध्यापन के वर्षों में गुरुदेव इस क्षमता के विकास के लिए भक्तों को तीर्थ यात्रा पे हर माह एक पास के पर्वत की चोटी पर ले जाते थे जहाँ से वो नीचे के शहरों को देख सकें. इस अभ्यास द्वारा चीज़ को एक सम्पूर्णता से देखने की क्षमता का विकास होता था.

एक विशेष प्रकार के मानसिक ढर्रे को देखा और बेहतर किया जा सकता है जब हम ऐसी आदत देखें जिसमे एक किसी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने के इरादे से निर्णय लिया जाता है पर इसे पहली ही रुकावट आने पर तिलांजलि दे दी जाती है. जब इस काम को छोड़ने की प्रवृत्ति को पहचाना जा सकता है , हम एक नयी आदत का विकास कर सकते हैं जिससे हम सब्र से अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते हैं चाहे उसमे रुकावटें का सामना ही करना पड़े. एक दूसरा उदाहारण होगा अपनी आध्यात्मिक साधनाओं को आगे बढाने की प्रवृति का इरादा, पर अपने इस इरादे को अपने अधार्मिक दोस्तों के साथ समय बिताने के बाद परित्याग कर देना. इस समस्या का समाधान होगा अपने अध्यात्मिक दोस्तों के साथ अधिक समय बिताना और कम विश्वास करने वाले लोगों के साथ कम समय बिताना.

सनातन वर्तमान में रहने का एक अन्य फायदा यह होता है कि आप में अपने अन्दर की ओर मुड़ने की योग्यता का विकास हो जाता है और आप अपने भीतर की अध्यात्मिक शक्ति को अपनी रीढ़ की हड्डी में महसूस कर सकते हैं. वहां एक गतिशील शक्ति होती है, जिसका अनुभव करने से हमारे में प्रेरणा एवं सकारात्मकता का नवीकरण होता है. जब हम कुछ निरुत्साहित महसूस करते हैं, तब हम नई उर्जा एवं उत्साह को महसूस कर सकते हैं जो हमारे हाथ में जो भी कार्य है उसको करने में सहायक होगा , चूँकि हम अपने विचारों को शांत कर पाने में सफल होंगे और उस आध्यात्मिक शक्ति से जुड़ सकेंगे जो रीढ़ की हड्डी में महसूस की जा सकती है.

में अब आपके साथ बांटता हूँ गुरुदेव की एक अंतिम अंतर्दृष्टि , जो की सनातन वर्तमान के अनुभव से सम्बंधित है : क्या आप ठीक इस समय कल्पना कर सकते हैं कि आप एक पेड़ की चोटी पर संतुलन बना कर बैठे हैं ? अगर वेह पेड़ आगे की तरफ ज्यादा झुक जाता है , आप ज़मीं पर गिर जायेंगे, या फिर समय और विचार में पीछे चले जायेंगे. अगर वही पेड़ पीछे की तरफ ज्यादा झुक गया, फिर भी आप गिर जायेंगे. उस पेड़ के ऊपर अपना संतुलन बना कर आप सारे शेहर का एक विहंगम दृश्य देख कर आनंद उठा सकते हैं. परन्तु अगर आप अतीत की किसी एक बात को दोबारा सोचने के लिए रुक जायेंगे, तो आप उसमें इतने खो जायेंगे की आप ज़मींन पर दोबारा गिर जायेंगे. आप पाएंगे की आप विचार की चेतना के उच्च स्तर पर हुए संतुलन में नहीं रह पाएंगे. यहाँ आप एक सनातन वर्तमान में रहते हैं जिसमे आपके आसपास और भीतर की महान सजगता होती है और उसमें कोई विचार नहीं होता.