Dressing Ethnically
दूर से बैण्ड का अभ्यास करना स्कूल के लिए कपड़े पहनने से रुक जाने की कोई वजह नहीं है
पारम्परिक पोशाकों को प्रोत्साहित करना एक तरीक़ा है जिससे स्कूल छात्रों को अपनी पहचान को अभिव्यक्त करने में सहायता करते हैं
मुग्धा शिन्दे, कैलीफ़ोर्निया
पहली बार जब मैंने स्कूल के लिए भारतीय कपड़े पहने तो मैं चौथी कक्षा में थी। हम जीवनी का एक प्रोजेक्ट कर रहे थे और हमें उस व्यक्ति के जैसे कपड़े पहनने थे जिसका हमने चुनाव किया था। मेरे मामले में, वह थी प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका, आशा भोंसले, और एक और भी प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर की बहन थीं। मैंने एक “आधी साड़ी” पहनी थी क्योंकि आशा महाराष्ट्र से हैं, जहाँ से मेरा परिवार है, यह यह साड़ी यहाँ की पारम्परिक पोशाक है। यह एक शानदार अनुभव था। हर किसी ने पोशाक पहन रखी थी, इसलिए मैं कक्षा में बहुत अलग नहीं लगी।
चौथी कक्षा की मुग्धा, आशा भोंसले की तरह एक आधी साड़ी में है, साथ में पहली कक्षा में पढ़ने वाला उसका भाई आदित्य है
ज़्यादातर लोगों ने संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों की जीवनी का चयन किया था। मैं उन कुछ लोगों में से थी जिन्होंने उत्तरी अमेरिका के बाहर से किसी को चुना था। मुझसे कक्षा के अन्दर और बाहर दोनों जगह प्रश्न किये गये और मैंने लोगों को बताया कि आशा भोंसले कौन थी, और उनके द्वारा गाये गये सभी शानदार गीतों के बारे में बताया। कोई भी प्रश्न नकारात्मक नहीं था, और सभी प्रसन्न थे कि मैंने कुछ अलग चीज़ चुनी है। मुझे चिन्ता थी कि साड़ी बहुत बाधक होगी, लेकिन इसमें मैं सभी स्कूल की गतिविधियाँ कर सकी, जिसमें शारीरिक शिक्षा की कक्षा भी शामिल थी। कुल मिलाकर, मुझे यह पोशाक पहनना बहुत अच्छा लगा।
पाँचवी कक्षा में, मैं विजयदशमी पर स्कूल में एक पंजाबी पोशाक पहनने के लिए प्रेरित हुई। यह कोई कक्षा का कार्यभार नहीं थी, बल्कि मेरी पसन्द थी। मैंने लोगों को त्यौहार के बारे में बताया, कि कैसे इसमें राम के द्वारा रावण की पराजय का उत्सव मनाया जाता है। बच्चों और अध्यापक, सभी ने मुझे “दशहरे की शुभकामना” दीं और मेरी पोशाक की प्रशंसा की। यह अनुभव चौथी कक्षा के अनुभव से ज़्यादा मज़ेदार था क्योंकि बस मैं ही पोशाक में थी। मैंने होनली और दीपावली पर भी पोशाक पहनी। ज़्यादातर लोग दीपावली के बारे में जानते थे, और इसलिए जब उन्होंने मुझे और अन्य छात्रों को भारतीय पोशाक में देखा, तो उन्होंने हमें “दीपावली की शुभकामनाएँ” दीं। कुछ दिनों पर, तो मैंने बस आनन्द के लिए पोशाक पहनीं।
अगले साल, मैं माध्यमिक स्कूल में गयी जहाँ वार्षिक सांस्कृतिक दिवस होता था जिसमें छात्र अपने पारम्परिक पोशाक को पहनने, या नृत्य करने अथवा गाने का चयन कर सकते थे। यह वैकल्पिक था, और भागीदारी अनिवार्य नहीं थी। छठवीं कक्षा में, यह कार्यक्रम शाम के समय था, ताकि माता-पिता भी आ सकें। चीनी, जापानी, भारतीय, मेक्सिको, कोरियाई और यहूदी संस्कृतियों के छात्र भी थे।
मैंने एक कोरियाई छात्रा, क्लेयर ली से पूछा कि वह क्यों भागीदारी करना चाहती है। उसने बताया, “मैंने किया क्योंकि मैं जानती थी कि के-पॉप अमेरिका जैसे देशों में बहुत प्रसिद्ध हो रहा है, लेकिन लोगों ने कोरियाई प्रदर्शन के पारम्परिक पक्ष को बहुत अधिक नहीं देखा है। पहले तो, मैं प्रदर्शन करने को लेकर संशय में थी क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि किसी को हमारे पारम्परिक नृत्य को देखने में आनन्द आयेगा। लेकिन मैं चाहती थी को लोग कोरियाई संस्कृति के बारे में और जानें। आश्चर्यजनक रूप से, (कम से कम मेरे लिए), शायद ही किसी ने सवाल किया हो। अन्ततः, मुझे नृत्य के माध्यम से अपने देश का प्रतिनिधित्व करना अच्छा लगा, भले ही सभी ने इसका आनन्द न लिया हो।”
लगभग एक तिहाई छात्रों ने इस सांस्कृतिक दिवस में हिस्सा लिया, जिसमें कुछ भारतीय थे। कार्यक्रम के शाम को होने के कारण कुछ छात्र इसमें नहीं आ सके क्योंकि कक्षाएं या गतिविधियाँ टकरा रही थीं। दुर्भाग्य से, कार्यक्रम से पहले मेरी वालीबॉल का अभ्यास था, और मैं घर जा कर पारम्परिक पोशाक नहीं बदल सकी। मैं सामान्य कपड़ों में आयी, और मैंने उन छात्रों का समर्थन करने की कोशिश की जो पोशाक में थे। भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली एक मात्र मंचीय प्रस्तुति बॉलीवुड नृत्य था। मेरे लिए, बॉलीवुड भारत की विस्तृत संस्कृति का एक हिस्सा है और अपने-आप में भारत की एक अच्छी प्रस्तुति नहीं है।
अन्तिम बार जब मैने महामारी शुरु होने के पहले स्कूल के लिए भारतीय पोशाक पहनी, वह छठवीं कक्षा में भावना दिवस का दिन था। मेरे स्कूल में, छात्र अपने स्कूल की भावना को शुक्रवार के दिन मध्यावकाश के समय की गतिविधियों में हिस्सा लेकर दर्शा सकते हैं। इस विशेष भावना दिवस के दिन, विषय किसी चरित्र की तरह पोशाक धारण करने का था। ज़्यादातर बच्चों ने फ़िल्मी चरित्रों की पोशाकें पहनी थीं, लेकिन मैंने एक गौरवान्वित भारतीय व्यक्ति की भाँति कपड़े पहने। मेरे कुछ दोस्तों ने मेरी पोशाक को लेकर मेरी प्रशंसा की। मुझे यह देखकर खुशी हुई कि दूसरे भारतीय छात्रों ने अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करना शुरु कर दिया था, जिसमें हमारे स्कूल के प्रतिभा प्रदर्शन भी शामिल था, जिसमें दो भारतीय/नेपाली नर्तक थे।
हर बार जब मैं स्कूल के लिए भारतीय पोशाक पहनती तो यह मज़ेदार अनुभव होता था, और इसका सिलिकॉन वैली में रहने से भी सम्बन्ध था, जो बहुत विविधतापूर्ण क्षेत्र है। यहाँ अलग तरीक़े की पोशाक पहनना उतना असामान्य नहीं है, जितना कि एक कम विविधतापूर्ण क्षेत्र में होता है, जैसे कि आयोवा। कम विविधतापूर्ण समुदाय को हिन्दू संस्कृति से परिचित करना कठिन होगा। हालांकि, घूरा जाना और सवाल किया जाना ठीक है यदि पारम्परिक पोशाक पहनने का अर्थ हिन्दू धर्म के बारे शब्दों का प्रसार है।
भविष्य में, मुझे आशा है कि बहुत से लोग स्कूल, स्टोर और सार्वजनिक कार्यक्रमों में पारम्परिक पोशाकों में जाने के लिए प्रेरित होंगे। क्लेयर ली जैसे लोगों ने यह करना शुरु किया, और उसके अनुभव ने इस बार के पतझड़ में अपने स्कूल की प्रतिभा प्रदर्शन के कार्यक्रम में भागीदारी के लिए प्रेरित किया है, जिसके जीवन फिर से सामान्य होने पर होने की उम्मीद है।
मुग्धा शिन्दे, जो १३ वर्ष की हैं, कुपेर्टिनो, कैलीफ़ोर्निया में कुपेर्टिनो मिडिल स्कूल की आठवीं कक्षा की छात्रा है। वह अपने स्कूल के उन्नत बैंड में तुरही बजाती है, और उसे खाना बनाना और पकाना पसन्द है। mugdha.shinde29@gmail.com