The Awesomeness of Asafoetida
उज़्बेकिस्तान के किज़िल्कम मरुस्थल में बढ़ता परिपक्व फेरुला हींग (इनसेट: पेड़ को काटना और राल निकालना)
यह कड़वी सामग्री भारतीय सब्जियों, मसालों और अचारों की एक विस्तृत विविधता में पूर्ण और नमकीन स्वाद जोड़ देती है
यह अजीब लग सकता है, लेकिन आज जो हींग भारत में खाना बनाने के लिए इतना अनिवार्य है, असल में एक प्राचीन रोमन मसाला है। उनके व्यवसायी इसे कम से कम ३०० ईसा पूर्व दक्षिण भारत की चोल, चेर और पाण्ड्य वंशों के शासन के दौरान लेकर आये। यह पौधा फेरुला हींग से निकलता है, जो मूलतः मध्य एशिया का है और आज मुख्यतः ईरान और अफ़गानिस्तान में उगाया जाता है। भारत हर साल १ अरब डॉलर की हींग का आयात करता है। उपमहाद्वीप में वाणिज्यिक पैमाने पर इसे उगाने के प्रयास अभी तक असफल रहे हैं।
लैटिन नाम फ़ेरुला का अर्थ “वाहक” या “गाड़ी” होता है और असाफोटिडा का वास्तविक अर्थ है “दुर्गन्धयुक्त गोंद”। इसके असंख्य अच्छे गुणों को मान्यता देने के लिए इसे उदारतापूर्वक “देवताओं का भोजन” कहा जाता है। इसे संस्कृत और हिन्दी में हींग कहा जाता है और यह प्रसिद्ध आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी सूत्र हींगाष्टक का प्रमुख अवयव है। केवल कुछ मसाले जैसे अजवायन, सौंफ, जीरा, धनिया और सौंफ इसी परिवार एपियासी से आते हैं।
पौधा लम्बा और दीर्घजीवी होता है; जो सूखी चट्टानी मिट्टी में छः फ़ीट तक होता है। इसकी बड़ी गाजर के आकार की मुख्य जड़ पौधे के चार से पाँच वर्ष का होने पर शीर्ष पर व्यास में चार से छः इंच तक होती है। गोंद को निकालनी कठिन कार्य है। पौधे में फूल आने से ठीक पहले, मार्च-अप्रैल में, उन्हें आधार के पास काटा जाता है। एक दूधिया रस कटी हुई सतह से स्रावित होता है। कुछ दिनों बाद, इसे खरोंच कर निकाल दिया जाता है और एक जड़ का एक ताज़ा टुकड़ा काटा जाता है। यह प्रक्रिया कई महीनों तक दुहराई जाती है; इसके बाद पौधा फ़िर से बढ़ता है।
व्यावसायिक रूप में, हींग ठोस गोंद या पाउडर के रूप में उपलब्ध होती है। आमतौर पर, हींग के मिश्रण में राल का पाउडर, चावल का आटा और गोंद की सुगन्ध होती है। ठोस गोंद को हथौड़े या पत्थऱ से तोड़ना होता है, उसके बाद इसे गर्म पानी में भिगोते हैं। यह बहुत तीखा होता है।
पूर्ण और पिसी हुई राल. शटरस्टॉक
रसोई में प्रयोग
हींग भारतीय पकवानों में अनिवार्य है। इसे मसालों की टेम्परिंग की प्रक्रिया के दौरान डाला जाता है, जो सूप, स्ट्यू, तली हुई सब्जियों, चटनी या अचार बनाने की प्रक्रिया का पहला चरण है। टेम्परिंग का अरथ है किसी मसाले को गर्म करना, चाहे सूखे में अथवा तेल में ताकि इसे पकाया जा सके और इसका स्वाद आ सके। आमतौर पर, सबसे पहले सरसो के बीजों को तेल में “छाना” जाता है, फ़िर जीरा डाला जाता है और फ़िर हींग। अपने आप में, हींग की कोई अच्छी गंध नहीं होती है। हालांकि, गर्म करने और दूसरे मसालों के साथ मिलाने पर, यह स्वाद और सुगन्ध को उसी तरह से बढ़ा देता है जैसे हरी प्याज या लहसुन का असर होता है।
हींग का प्रयोग हजारों व्यंजनों में किया जाता है। yummly.com नाम की एक वेबसाइट पर एक खोज में इस मसाले के इस्तेमाल वाले ३,५२७ व्यंजन मिलते हैं। इसका प्रयोग करके बनाया गया एक प्रसिद्ध उत्तर भारतीय स्ट्रीट फ़ूड पानी पूरी है। यह एक खोखली, बहुत अधिक तली हुई पूड़ी होती है, जिसमें मसालेदार आलू, प्याज या छोले भरे होते हैं। हींग-केन्द्रित संस्करण में, उसके बाद इस इसे पुदीने की पत्तियों, धनिया की पत्तियों, हरी मिर्च, इमली के गूदे, गुड़, काला नमक, जीरा पाउडर, चाट मसाला, लाल मिर्च पाउडर और हींग के पतले पेस्ट में डुबोया जाता है। (देखें bit.ly/hingvideo).
पूनम महेन्दर और श्रद्धा बिष्ट द्वारा फ़ार्माकोग्नोजी रिव्यू (bit.ly/-hing) पत्रिका में २०१२ में किये गये एक व्यापक अध्ययन के अनुसार ईरानी लोग हींग का प्रयोग अपने लगभग सभी व्यंजनों में मसाले के रूप में करते हैं। फ़्रांसीसी पाक विद्या के विशेषज्ञ उन गर्म तश्तरियों पर थोड़ी हींग रगड़ देते हैं जिनमें वे मांस खाते हैं। विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करने पर, यह सब्जियों, स्ट्यू, ग्रेवी आदि को और बढ़िया बना देता है। वार्सेस्टरशायर सॉस का अलग स्वाद हींग से आता है। उसी लेख के अनुसार सबसे अधिक अप्रत्याशित यह है कि इसके साथ ही यह सुन्दर सुगन्धों की एक उपयोगी सामग्री है।
चावल में डालने से पहले मसालों और काजुओं की घी में टेम्परिंग
स्वास्थ्य लाभ
अपनी वेबसाइट www.ayurtimes.com/hing/ पर, डॉ. जगदेव सिंह हींग के असंख्य प्रयोग बताते हैं। “हींग से स्वास्थ्य लाभ इसके पाचक, वातनाशी औऱ दर्दनाशक क्रियाओं को बताते हैं। भूख बढ़ाने, वात को मुक्त करने और पाचन को सुधारने में यह लाभ पहुँचाती है।” वह कटिस्नायुशूल, उच्च कोलेस्ट्रॉल, उच्च और निम्न रक्तचाप और दंत स्वास्थ्य जैसे विकारों में इसके उपयोग के बारे में विस्तार से बताते हैं। अन्य स्रोत इसे महिलाओं की स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज़ में उपयोगी मानते हैं जैसे बाँझपन, गर्भपात, समयपूर्व प्रसव, असामान्य रूप से दर्दनाक, कठिन और अतिरिक्त मासिक स्राव और ल्युकोरिया।
भोजन में बहुत कम मात्रा में प्रयोग करने पर इसका कोई हानिकारक प्रभाव नहीं होता, लेकिन अधिक खुराक के लिए किसी जानकार चिकित्सक से सलाह लेना हमेशा सर्वोत्तम होता है।
पोंगल की विधि
चावल पोंगल का स्वाद अक्सर हींग के प्रयोग से अच्छा हो जाता है
पोंगल
मकर संक्रान्ति के भोजन की सबसे लोकप्रिय सामग्री, पोंगल, वास्तव में मूँग दाल के साथ पकाया गया चावल है, जिसमें काली मिर्च, जीरा और हींग जैसे मसाले होतं है और इसे घी में भूने गये काजू के साथ सजाया जाता है।
तैयार करने का समय: ५ मिनट
पकाने का समय: ३५ मिनट
खाने वालों की संख्या: ५
सामग्री
२ कप चावल
१/४ कप बिना छिलके वाली मूँग दाल
१ टी स्पून खड़ी काली मिर्च
१ टी स्पून जीरा
हींग की राल का एक छोटा टुकड़ा
एक इंच कटी हुई अदरक
१/२ कप भुने हुए काजू
१ टेबल स्पून करी पत्ती
१/२ कप शुद्ध घी
१ टी स्पून नमक
विधि
१.चावल और मूंग दाल को प्रेशर कूकर में पाँच कप पानी और नमक के साथ एक साथ पकाएँ। पोंगल बनाते समय हमेशा अधिक पानी प्रयोग किया जाता है। अगर पोंगल थोड़ा गीला हो तो ठीक होता है।
२. मसालों को टेम्पर करें। इससे पोंगल में अद्भुत महक, स्वाद और आनन्द आ जाता है। पहले हींग को एक टेबल स्पून उबलते पानी में डालें, फ़िर इसे मूसल से कुचल दें। सॉसपैन में मध्यम आँच पर १ टेबल स्पून गर्म घी में काली मिर्च डालें और इसे दो मिनट तक गर्म करें जब तक यह फूल न जाये। जीरा, हींग, काजू, करी पत्ता और अदरक को दो मिनट के लिए और डालें।
३. आँच से हटाएँ। इसे पके हुए चावल और मूँग दाल में मिला दें। बचे हुए घी, नमक को स्वाद बढ़ाने के लिए डाल दें और इसे चम्मच से ठीक से मिला दें।
लेखिका के बारे में
लक्ष्मी श्रीधरन एक दक्षिण भारतीय मूल की एक अमेरिकी वैज्ञानिक हैं जो सैन जोस, कैलिफ़ोर्निया में अपने पति टिम के साथ रहती हैं। एक फ़्रीलांस लेखिका के रूप में, वह दूसरों के साथ पादप विज्ञान, पाक विज्ञान, बागवानी और पाककला और साथ ही भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की जानकारी साझा करना पसन्द करती हैं।