हिन्दू मूल्यों को अन्तःस्थापित करना

Instilling Hindu Values

हिन्दू माता-पिताओं को अपने बच्चों को अपने धर्म की जानकारी रखने वाला और गर्व करने वाला, दोनों होने की शिक्षा देनी चाहिए

मनसा देवकी

मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मेरा जन्म एक ऐसे हिन्दू परिवार में हुआ जिसे अपनी संस्कृति और धर्म पर गर्व है। मेरा जन्म बे एरिया में हुआ था और मैं १२ साल की उम्र तक वहीं बड़ी हुई। उसके बाद हम माउई, हवाई गये। कैलीफ़ोर्निया में, मेरे माता-पिता मुझे और मेरे भाई को मन्दिर ले गये, जैसा हर हिन्दू परिवार करता है। मुझे वहाँ जाने, अपने मन्दिर के रोज़ के दोस्तों से मिलने और पुजारियों द्वारा रोज़ की जाने वाली आकर्षित करने वाली पूजा को देखने में मजा आता था। मुझे पारम्परिक भारतीय कपड़े पहनना और प्रार्थना के बाद प्रसाद खाना पसन्द था। हालांकि मुझे धार्मिक कर्मकाण्डों के लिए कभी बाध्य नहीं किया गया, लेकिन एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह मैं हमेशा वह करती थी।

 हमारी जीवन शैली सन्तुलित थी, मन्दिर जाना लेकिन साथ ही मूवी थिएटर या पार्क में भी। हमारे माता-पिता समझते थे कि आज के दिन और समय में, युवाओं का सही रास्ते से भटक जाना आम बात है यदि माता-पिता उनके प्रश्नों और भावनाओं को अनसुना करते हैं। हालांकि बहुत से माता-पिता हिन्दू कर्मकाण्डों और प्रार्थनाओं का महत्व नहीं समझाते हैं, मेरे माता-पिता हमेशा हर चीज़ के पीछे का कारण बताते थे। वे हमारे लिए हिन्दू देवताओं के बारे में मज़ेदार कॉमिक्स खरीदते थे जो हमारे जीवन के तरीके के बारे में सन्देश देती थीं। मैंने इन सन्देशों को अपने जीवन में स्कूल और घर पर लागू किया। मैं यह देखने लगी कि मेरे आसपास के लोग क्या कर रहे हैं और उन्हें क्या नतीज़े भुगतने पड़ेंगे।  इससे मुझे परमेश्वर के साथ मजबूत आध्यात्मिक बन्धन में बँधने में सहायता मिली। 

मेरा परिवार अक्सर परिवार के लोगों से मिलने के लिए भारत जाता है और तीर्थयात्रा करता है। अपने प्राचीन धर्म की मन्दिरों के माध्यम से तलाश करने ने मेरे भाई और मुझे जुड़ाव की अनुभूति प्रदान की। हमने पाया कि जिन कहानियों को हमने पढ़ा है उनके पीछे वास्तविक जगहें हैं। उदाहरण के लिए, रामायण में राम सेतु के तैरते हुए पत्थरों का वर्णन है। मुझे इस पर तबतक विश्वास नहीं था, जब तक मैंने रामेश्वरम मन्दिर में इन तैरते हुए ज्वालामुखी पत्थरों को नहीं देखा। 

इसलिए कि मैंने बचपन में अपने मूल के बारे में इतना जाना था, कि मेरे जीवन का परिवर्तन बहुत आसान रहा। जब भी स्कूल में मेरे सहपाठी मुझसे भारत या हिन्दू धर्म के बारे में कोई प्रश्न करते, मेरे पास हमेशा गर्वपूर्ण उत्तर तैयार रहता था। मेरे परिवार ने हमेशा खुलकर बोलने के प्रेरित किया, इसलिए मैं किसी मौके पर मेरे शिक्षकों या दोस्तों की मेरी संस्कृति या धर्म के बारे में हो जाने वाली ग़लतियों को सुधारने में शर्माती नहीं थी। हमने माध्यमिक विद्यालय में हिन्दू धर्म पढ़ा, और जब शिक्षक ने हवन के समय चढ़ावे के बारे में एक गड़बड़ी की, जो एक अग्नि अनुष्ठान होता है, मैंने तुरन्त इसे सही करने के लिए अपना हाथ उठाया। तब मेरे पास बचे हुए पूरे समय के दौरान अपनी पूरी कक्षा से हिन्दू धर्म के बारे में बात करने का अवसर मिला। हर की प्रभावित था, और यह पहली बार ऐसा क्षण था जब मैंने महसूस किया कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व है। 

हमारे मन्दिरों में ऐसे युवाओं को देखना निराशाजनक है जो यह नहीं समझते कि क्या हो रहा है, या जो शर्मिन्दा होते हैं या यहाँ तक कि जो अपनी परम्पराओं का उपहास करते हैं। मेरा मानना है कि अपने बच्चों में हिन्दू मूल्य डालना माता-पिता की ज़िम्मेदारी है, ताकि न केवल वे अपनी संस्कृति से परिचित हों, बल्कि इस पर गर्व करें। धर्म किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत पहचान और आन्तरिक सामर्थ्य को स्थिर करने में सहायता करता है। इसलिए यदि माता पिता बच्चों को पियानो और टेनिस के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तो वे अपने धर्म और संस्कृति उनके वास्तविक स्व की खोज के महत्व पर ज़ोर क्यों नहीं देते? कोई भी प्रश्न, विशेष तौर पर बच्चों की ओर से, उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए।

आज, बहुत से लोग धर्म और आध्यात्मिकता का महत्व समझने में असफल रहते हैं। इस युग में, हिंसा और बुराई का अस्तित्व तो है; लेकिन हमारी मानवता का भी अस्तित्व है, और उसे जीवित रखना महत्वपूर्ण है। हिन्दू धर्म हमें कर्तव्यनिष्ठ, शिष्ट और दयालु होना सिखाता है, जो इस सिरे पर महत्वपूर्ण है। इसका आसान और तर्कसंगत विश्वास है जिन्हें अपने दैनिक जीवन में अपनाना कठिन नहीं है। हमारा कर्म का दर्शन एक अच्छा उदाहरण है। यदि आज मैं कष्ट उठा रहा हूँ, तो मुझे जानना चाहिए यह मैंने प्राप्त किया है और मुझे भविष्य में अधिक सावधान रहना होगा। इस साधारण विचार का बड़ा प्रभाव पड़ता है। हमने ग़ैर-हिन्दुओं को भी कर्म के बारे में बात करते देखा है, जिससे हमें मानना चाहिए कि हमारी संस्कृति में इस सोच का होना कितने सौभाग्य की बात है।


मनसा देवकी, जो २५ वर्ष की हैं, माउई, हवाई में हाईस्कूल में कनिष्ठ हैं। उन्हें हिन्दू धर्म की बारीकियों को पढ़ना पसन्द है और वह नाचना, गाना और परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना पसन्द करती हैं। ईमेल: mansa@mansasys.com

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