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दयालुता पूर्ण वाणी की शक्ति

शब्द दूसरों को चोट पहुंचा सकते हैं, इसलिए कठोर भाषा , पीठ पीछे निंदा और दोस्ताना चिढ़ाने से बचना सैदेव अच्छा होता है

द्वारा सतगुरु बोधिनाथा वेय्लान्स्वामी

मेरे गुरु, सिवाया सुब्रमुन्यास्वामी की मुख्य शिक्षाओं में से एक यह है कि हम एक आत्मा हैं, एक दिव्य अस्तित्व हैं। हालाँकि , हम एक भौतिक शरीर में रहते हैं – सन्निहित आत्माओं की तरह – मज़बूत विचारों और भावनाओं के साथ। इसी प्रकार, हमारे पास एक आत्मा प्रकृति, एक बौद्धिक प्रकृति और एक स्वाभाविक प्रकृति है। उन्होनें इस बहुलता को मन के तीन चरणों के रूप में वर्णित किया है: परम चैतन्य या आध्यात्मिक (जो आत्मा है); बौद्धिक या मानसिक; और सहज या शारीरिक-भावनात्मक।

यह स्वाभाविक, पशु जैसी प्रकृति है जिसमें गुस्सा, ईर्ष्या, भय या दूसरों के लिए हानिकारक होने की प्रवृत्तियां होती हैं। आध्यात्मिक पथ पर प्रगति करने का एक हिस्सा सहज मन को नियंत्रित करना सीखना है। यह वो जगह है जहां यम, दस नैतिक प्रतिबंध, क्रियान्वयन में आते हैं। वे प्रवृत्तियों की एक सूची प्रदान करते हैं जिन्हें हमें दमन करना चाहिए। मस्तिष्क को काबू में रखने का शास्त्रीय हिंदू चित्रण वह है जो रथ चालक अपनी लगाम से तीन, चार या पांच घोड़ों की एक टीम को वापस खींचकर उन्हें नियंत्रण में रखता है। यह यम वो लगाम हैं जो हमारे सहज और बौद्धिक स्वरूपों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जो मजबूत जंगी घोड़े की तरह हैं जो काबू में हों तो हमारे लिए काम कर सकते हैं और अगर बेकाबू हों तो जंगलीपन पे उतर सकते हैं।

पहला यम चोट न पहुँचाना या अहिंसा है : विचार, शब्द या कर्म से दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाना। चोट न पहुँचाना , जैसा कि हम सब जानते हैं , एक प्रमुख हिन्दू सिद्धांत है। यक़ीनन हम में से ज्यादातर शारीरिक हिंसा में लिप्त नहीं होते हैं। हम इस बात से यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि अहिंसा हमारे लिए कोई चुनौती नहीं प्रस्तुत करती है। हालांकि, अहिंसा की परिभाषा पर अधिक बारीकी से देखने पर, हम देखते हैं कि इसमें हमारे विचार या शब्दों से दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचना चाहिए। इसलिए एक आध्यात्मिक जीवन के अनुसरण करने वालों को हमारी भाषा और हमारे विचारों से चोट न लगे इसका अभ्यास करने की आवश्यकता है।

आध्यात्मिक पथ पर प्रगति करने के लिए हमें अपने कमजोर बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करने और उन्हें सुधारने का प्रयास करने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, हमें इस दृष्टिकोण को धारण करने की आवश्यकता है कि चाहे हम किसी विशेष अभ्यास में कितना ही अच्छा क्यों न कर रहे हों, हम हमेशा बेहतर कर सकते हैं, हमारे व्यवहार को और भी परिष्कृत करने के तरीके खोज सकते हैं। बातचीत शायद संचार के लिए हमारा सबसे शक्तिशाली उपकरण है और इस योग्य है कि इसपर हम अपना ध्यान केंद्रित करें ।

हमारा भाषण उपयुक्त है या नहीं , इसका निर्णय करने के लिए गुरुदेवा नें चार प्रकार के दिशानिर्देश प्रदान किये हैं : “केवल वही बोलो जो सत्य , दयालुता पूर्ण , उपयोगी और जरूरी है।” हम उस दोस्त का उदाहरण लेते हैं जो अधिक वजन वाले है। हम वास्तव में चिंतित हैं कि उनके स्वास्थ्य के लिए कुछ वजन कम करना महत्वपूर्ण है। हम अपनी चिंता जताते हुए कहते हैं, “रवि, आप बहुत भारी हैं।” हमारा संदेश उपयोगी होने का परीक्षण पास करता है लेकिन दयालुता की परीक्षा में विफल रहता है। हमें अपनी चिंता को अधिक चतुराई से व्यक्त करने की आवश्यकता है। शायद, “मुझे आशा है कि आप मेरी राय का बुरा नहीं मानेंगे, रवि, लेकिन आपके स्वास्थ्य के लिए आहार और व्यायाम के बारे में गंभीर होना अच्छा होगा।” यहां तक ​​कि सहायक शब्दों को भी दयालुतापूर्वक व्यक्त करने की जरूरत है अगर वे वैसा प्रभाव डालें जैसा हम चाहते हैं। हमारी बातचीत से दूसरों को चोट पहुंचाने के चार सामान्य रूप हैं: मजाक करना, चिढ़ाना , गपशप करना और पीठ पीछे निंदा करना।

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मज़ाक करना और चिढ़ाना

आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें जो मजाक करने और चिढ़ाने को वर्णित करते हैं । पहला उदाहरण: एक सहकर्मी के पास एक विशेष विशेषाधिकार या पद है। हम असन्तोषपूर्ण दिखते हुए कहते हैं, ” फलाने को देखो मैं उससे बेहतर हूँ ! उसे वह काम करने से क्यों छूट दी गयी जो हमें आज करना पड़ा ?” दूसरा उदाहरण : कोई विदेशी उच्चारण से बातचीत करता है। आप उसके दोषपूर्ण उच्चारण की नक़ल करते हैं और हँसते हैं। तीसरा उदाहरण : एक सहकर्मी को नंबरों के गुना करने में मुश्किल होती है। जब वो किसी गणना करने में संघर्ष करती है , आप उसका मज़ाक उड़ाते हैं। तर्क है “मैं मजाक कर रहा हूं,” “बस मज़ाक़िआ हो रहा हूँ ,” “अपने दोस्तों का मनोरंजन कर रहा हूँ ।” वास्तव में, आपके शब्द हिंसक हैं; आप अपने भाषण के माध्यम से दूसरों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और कह रहे हैं कि आप सिर्फ मजाक कर रहे हैं, जैसे कि हास्य चोट को हटा देता है या उससे बचाता है। शब्द असली दर्द पैदा कर सकते हैं, भले ही वे मजाक में कहे जाते हैं। कई लोग यह महसूस नहीं करते हैं। महत्वपूर्ण व्यंग उस व्यक्ति की कीमत पर आता है जिसका आप मज़ाक उड़ा रहे हैं ! इन उदाहरणों के हमारे चार निर्देशों वाले परीक्षण पर मूल्यांकन करने पर , हम देख सकते हैं कि वे न तो सत्य, दयालुतापूर्ण , सहायक हैं और न ही आवश्यक हैं।

गपशप

गपशप दूसरों के निजी जीवन के ब्योरे के बारे में बात करके मज़े लेना है , जब वे उपस्थित न हों। यह हमारे स्वयं का एक टी वी धारावाहिक बनाने और देखने की तरह है। इस तरह की बातचीत उनका मनोरंजन करती है जो उपस्थित हों उस व्यक्ति की कीमत पर जिसके बारे में गप्पबाज़ी की जा रही है। कुछ पत्नियां नियमित रूप से अपने पतियों के बारे में फोन पर या इंटरनेट पर, अन्य पत्नियों के साथ गपशप करती हैं। कुछ पति सहकर्मियों के बीच अपनी पत्नियों के बारे में शिकायत करते हैं। ऐसी बेकार की बातें शायद सच होने की परीक्षा पास कर सकती हैं , लेकिन यह अन्य तीन परीक्षणों में विफल हो जाती है: दयालुता , मददगार होना और आवश्यक होना। पतियों को सफल होने के लिए अपनी पत्नियों के समर्थन की आवश्यकता है। पत्नियों को अपने पति के समर्थन की ज़रूरत है, ताकि वे सुरक्षित हो। कहानियां कहना और चिढ़ाना किसी भी रिश्ते में समर्थन को विनाशकारी रूप से कमज़ोर कर सकता है।

पीठ पीछे निंदा

अंतिम किन्तु महत्वपूर्ण है पीठ पीछे निंदा। दूसरे में दोष खोजना और अन्य लोगों के साथ ऐसी कमियों को साझा करना बहुत से लोगों का शौक है जिसमें उन्हें आनंद आता है। दूसरों में गलतियां देखना और उसकी शिकायत करना बेहद आसान है बनिस्पत इसके कि हम खुद में वही दोष देखें और उन्हें ठीक करें। तिरुकुरल छंद 190 में चुनौती देता है , “ यदि पुरुषों को अपनी गलतियों का एहसास होता, जैसे कि वे दूसरों की गलतियों का करते हैं, तो क्या उनके लिए दुर्भाग्य कभी आ सकता है?” और छंद 188 में: “यदि पुरुष दोस्तों की गलतियों को फ़ैलाने पर उतारू हैं , तो अजनबियों को कितना घातक नुकसान पहुंचाएंगे ? पीठ पीछे निंदा स्पष्ट रूप से हमारे भाषण परीक्षण में विफल रहता है। तथ्य यह है कि जब तक हम किसी के पालन-पोषण या प्रशिक्षण के लिए जिम्मेदार नहीं होते हैं, जैसे कि अपने बच्चों के माता-पिता या अपने कर्मचारियों के पर्यवेक्षक के तौर पर, दूसरों की गलतियों को अनदेखा करना और उसकी बजाय हमारी अपनी कमियों को खोजने और सुधारने पर ध्यान देना सर्वोत्तम है। अपने आप में सुधार सकारात्मक आध्यात्मिक उन्नति पैदा करता है; दूसरों की आलोचना करना ऐसा नहीं करता। अगली बार जब आप दूसरों के दोषों पर ठहरते हैं , अपने आप से पूछिए आपकी स्वयं वैसी कमियां हो सकती हैं , क्योंकि जो दूसरों में आपको परेशान करता है अक्सर उस ओर इशारा करता है जो बेहतरी आप को अपने आप में लानी होती है।

तीन गुणों पर ध्यान केंद्रित करना

जो अध्यात्म के पथ पर हैं उनके लिए पीठ पीछे निंदा, गपशप और हानिकारक हास्य से बचना बहुत मुश्किल नहीं है। लेकिन अपने भाषण को और अधिक सूक्ष्म स्तरों पर नियंत्रित करना और परिष्कृत करना पूरे जीवनकाल की साधना है।

तीन गुणों जिन पर हम ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, वे हैं शिष्टाचार, कुशलता और संवेदनशीलता। शिष्टाचार है दूसरों की आवश्यकताओं एवं भावनाओं के प्रति विनम्र , सम्मानजनक एवं संवेदनशील होना। कुशलता है व्यवहार कुशल होना और लोगों और हालातों से निबटने में निपुण होना, असहमति की विवेकपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया देना , एवं ऐसे समाधान ढूँढना जिनसे सदभाव बना रहे और कोई अपमानित न हो। संवेदनशीलता है दूसरों के विचारों, व्यवहार और प्रकृति के प्रति भद्रतापूर्वक प्रशंसनीय रहना , बातचीत को सावधानीपूर्वक बिना दखलंदाज़ी किये सुनना , हावी होने के बजाय उत्थान के लिए प्रयास करना। तिरुकुरल चेतावनी देता है , “जो खुश करने वाली दोस्ताना बातचीत को नहीं जानते , वे व्यक्ति अपने दोस्तों को भी अपने विभाजनकारी प्रवचन से पराया बना देते हैं।” (छंद 187)।
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एक सामान्य रणनीति के रूप में, गुरुदेव ने हमें “बोलने से पहले सोचो” करने का निर्देश दिया। हम जो कहने जा रहे हैं, उसके बारे में चिंतन करना आवश्यक है, क्योंकि यह हमें अनुपयुक्त बोलने से बचाता है। इसलिए , भाषण के नियंत्रण में दो भाग हैं। सबसे पहले, बोलने से पहले, रुकें और विचार करें कि आप क्या कहेंगे। दूसरा, यह निर्धारित करें कि आपके शब्द सत्य, दयालु, सहायक और आवश्यक होने के परीक्षण पर पुरे उतरते हैं कि नहीं। यह सरल अभ्यास कई कठिनाइयों को दूर कर सकता है। यह उन टिप्पणियों पर भी लागु हो सकते हैं जो भूलवश हो गयीं हों , भविष्य के वार्तालापों को निर्देशित करने के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान कर सकते हैं।

तिरुकुरल छंद

हम प्राचीन बुनकर , तिरूवल्लुवर से सुखद शब्दों के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिन्होंने इस विषय पर तिरुकुरल के अध्याय दस को समर्पित किया था। यहाँ अमल किये जाने लायक चार छंद हैं।

“गरीबी पैदा करने वाले दुःख उन लोगों का पीछा नहीं करेंगे, जो जिनको भी मिलते हैं ख़ुशी देने वाले शब्दों का प्रयोग करते हैं ।” छंद 94

यदि कोई व्यक्ति मीठे शब्द बोलते समय अच्छा करने की इच्छा रखता है, तो उसके गुण बढ़ जायेंगे और उसके दोष समाप्त हो जाएंगे।” कविता 96

“शब्द आध्यात्मिक लाभ और नैतिक उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं, जब वे उपयोगिता और सहमति से दूर भटकते नहीं हैं।” छंद 97

” जहाँ मीठे शब्दों से काम हो सकता हो वहां कठोर शब्दों को बोलना, उस तरह से होगा जैसे हम बिन पके फल खाएं जबकि पके हुए उपलब्ध हों। छंद 100